Thursday, September 15, 2011

"कंपनी को दिखाने के लिए मजदूरों को पीटना ही पड़ता है" - महाराष्ट्र पुलिस


"कंपनी को दिखाने के लिए मजदूरों को पीटना ही पड़ता है" - महाराष्ट्र पुलिस
 
ओ. पी. पाण्डेय, नगोठना, रायगढ़, महाराष्ट्र।
साथ में लवकुश तिवारी, पुणे, महाराष्ट्र से।
१६ सितंबर २०११
जानी मानी स्टील कंपनी जिंदल स्टील चोरी के नाम पर उन मजदूरों को महाराष्ट्र पुलिस के साथ मिलकर प्रताड़ित करने में जुटी हुई है जो करीब 15-16 साल से दिन रात 12-15 घंटे कंपनी के लिए काम करते हैं आ रहे हैं। जिन्हें सुविधा के नाम पर पुलिक की मार मिलती है। वेतन के नाम पर मजदूरी 7-12 हजार रूपए मिलता है वो भी ओवरटाइम करने के बावजूद। जबकि इस महंगाई में 70 रूपए किलो दाल बिक रही है और 15 रूपए किलो आलू। जिस कंपनी के गेट से एक सूई नहीं जा सकती है उस कंपनी के गेट से 10-15 किलो का केबल कैसे गायब होता जाता है, यह रहस्य वाली बात है। पूरी कहानी जिंदल समूह की कंपनी महाराष्ट्र सिमलेस की है। जो महाराष्ट्र जिले के रायगड़ के नगोठना में स्थित है। जहां पिछले करीब एक महीने से मजदूरों को चोरी की शक के नाम पर पुलिस द्वारा मरवाया पीटा जा रहा है। यह कंपनी डीपी जिदंल की है जो कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के चाचा बताए जाते हैं।
 
 बात करीब एक महीने पहले की है। कंपनी का कहना है कि उसके फ्रेब्रीकेशन विभाग से लगभग 15-16 किलो की केबल चोरी हो गयी। कंपनी के डीजीएम के.एन.प्रसाद (जिसका मोबाइल नं. 09404223427) का खुद कहना है कि किसी भी मजदूर के ऊपर चोरी का कोई आरोप नहीं हैं सिर्फ उनके ऊपर लापरवाही का आरोप है। उनसे से सिर्फ पूछ-ताछ की जा रही है। इस बीच कंपनी ने जिन मज़दूरों पर काम में लापरवाही का आरोप लगाया है जिनकी वजह से बिल्डिंग केबल गायब हुई है (न की चोरी हुई है डीजीएम, के.एन. प्रसाद ने खुद कहा है) उनके घरों की तलाशी भी ली है। के.एन.प्रसाद ने 'थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़' से पहले तो यह कहा कि आपसे क्या मतलब है, कुछ भी नहीं चोरी नहीं हुआ है।
 
फिर उन्होंने कहा ऐसी छोटी-मोटी चोरियों तो होती रहती हैं। फिर उन्होंने खुद बताया था कि किसी भी मज़दूर के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी गयी है सिर्फ थाने में एक शिकायत की गयी है, जिसमें मजदूरों के प्रति काम में लापरवाही बरतने की बात कही गयी है। प्रसाद ने खुद कहा है कि किसी मजदूर पर चोरी का आरोप है। लेकिन अब प्रसाद गरीब और बेसहारा मजदूरों को पुलिस को पैसा देकर पिटवा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि जब किसी मजदूर पर चोरी का कोई आरोप नहीं है तो नगोठना थाने में (जिला रायगड महाराष्ट्र) मजदूरों को रोजाना बुलाकर पूछताछ के नाम पर क्यों पीटा जा रहा है।
 
इस बारे में थाना अध्यक्ष सोनवणे, नगोठना, जिला रायगढ़, महाराष्ट्र जिनका मोबाइल नंबर - 09821728576 है से जब उनस पूछा गया तो उनका उत्तर हैरान करने वाला था। सोनवणे का खुद कहना था कि किसी भी मजदूर के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि आपके थाने में क्यों फिर मजदूरों को बेल्टों से बुरी तरह से पीटा जा रहा है तो पहले तो उन्होंने पीटने की बात से इंकार किया लेकिन जब उन्हें इसका हवाला दिया गया तो सोनवणे साहब का हैरेतअंगेज जवाब था- "भाई कंपनी को दिखाने के लिए मजदूरों को पीटना ही पड़ता है"। जिससे बाकी के मजदूरों को सबक मिल सके। महाराष्ट्र पुलिस का यह कौन सा मानवीय चेहरा है कि किसी कंपनी (जिंदल स्टील कंपनी) को दिखाने के लिए गरीब और सीधे-साधे मजदूरों को झूठे आरोपों में थाने बुलाकर पीटा जा रहा है।
जिंदल स्टील समूह में मजदूरों पर कहर ढहाने का यह कोई पहला वाक्या नहीं है। मजदूरों पर जिंदल स्टील द्वारा शोषण करने और उन्हें प्रताड़ित करने के इस बारे में करीब 17-18 दिन पहले रायगढ़, महाराष्ट्र के एस.पी. आर.डी. शिंदे जिनका मोबाइल नंबर - 09594033933 से बात की गयी थी (फोन पर शिकायत की गयी थी) उन्होंने आश्वासन दिया था कि अभी तो हम गणेश पूजा के सिलसिले में बहुत व्यस्त हैं पूजा समाप्ति के बाद इस पूरे मामले को खुद देखेंगे, और जांच कराएंगे। लगता है एस.पी साहब अपनी बातों से तो मुकर गए या फिर मजदूरों के दर्द का उन्हें एहसास नहीं है। सवाल यह उठता है कि कंपनी जिसे लापरवाही मानती है उस लापरवाही की सजा रायगढ़ की पुलिस उन गरीब मजदूरों को थाने में रोजाना बुलाकर क्यों पीट रही है। जिनके खिलाफ न कोई सबूत है न कोई एफआईआर है, और तो और कंपनी खुद कहती है (डीजीएम के.एन.प्रसाद) कि मजदूरों पर चोरी की कोई आरोप नहीं है।
पूरे मामले में आरोपी मजदूरों से जब बात हुई है तो मजदूरों का कहना है कि वो काम करने के बाद दोपहर में खाना खाने के लिए कंपनी के कैंटीन में चल गए थे। जब वापस आए तो केबल गायब थी। इस केबल की कीमत तकरीबन 5-6 हजार रुपए बतायी जाती है। मजदूर जब गार्ड को बताने गए तो गार्ड भी गायब था। यही बात डीजीएम के.एन.प्रसाद भी कहता है कि इन मजदूरों पर चोरी का कोई आरोप नहीं है सिर्फ इनकी लापरवाही की वजह से केबल चोरी हुई है। के.एन.प्रसाद का कहना है कि जब ये लोग खाना खाने गए थे उसी समय गार्ड को बताकर जाना था। जबकि ऐसा कम होता है क्योंकि लोग कंपनी के अंदर काम के दौरान खाना खाने या चाय पीने जाते ही हैं।
अब इस कहानी की दूसरी पहलू भी है। सूत्र बताते हैं कि जिंदल स्टील की मजदूरों के प्रति एक पॉलिसी (शोषण पूर्ण, घृणित और स्वार्थी नज़रिया है) होती है। जो मजदूर १५-१७ साल से काम करते आ रहे हैं कल वो स्थायी नौकरी की मांग न करने लगे, पीएफ, ईएसआई की मांग न करें अथवा अपनी मांगों के संबंध में कोई संगठन न खड़ा कर लें इसलिए सीधे-साधे मजदूरों पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उन्हें परेशान किया जाता है और थाने को पैसा खिलाकर उन्हें मरवाया पीटा जाता है जिससे वह बाद में नौकरी छोड़कर मजदूर अपने घर चला जाए। और कंपनी फिर नए मजदूरों को उनकी जगह पर रखकर सस्ते से सस्ता में अपना काम करवा सके। इस काम को बखूबा अंजाम देता है कंपनी का प्रंबधन तंत्र। इस बात में पूरी तरह सच्चाई भी है।
अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि मजदूरों ने चोरी किया है। तो सवाल उठता है कि हर कंपनी की गेट से मजदूरों की कंपनी से जाते समय उसके जेब में हाथ डालकर तलाशी ली जाती है। एक ऐसा केबल जिसकी वजन १० -१५ किलो बतायी जाती है वह कैसे गायब हो गया ये सबसे बड़ा रहस्य है। इसलिए शक की पूरी सूई कंपनी के मैनेजरों पर जाती है। और पूरे खेल में कंपनी के प्रंबधन तंत्र का हाथ होने के शक को मजबूत करता है। जो मजदूरों को झूठे आरोप में पुलिस को पैसा खिलाकर पिटवा रही है।

Monday, August 22, 2011

क्यों खड़ा हो गया सारा 'मीडिया' अन्ना के साथ!



 
आकाश श्रीवास्तव
संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली। २२ अगस्त २०११।
कोढ़ और कैंसर से भी खतरनाक 'भ्रष्टाचार' से अभूतपूर्व लड़ाई पूरा देश लड़ रहा है। अन्ना ने जो लड़ाई शुरू की है वह ऐतिहासिक है अभूतपूर्व हैं। इस लड़ाई को अंजाम तक पुहंचाने के लिए मीडिया ने जो अभूतपूर्व व्यवस्था की है उससे सरकार की भौहें भी चढ़ गयी हैं। हकीकत भी है कि इस लड़ाई को देश का समूचा मीडिया इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिनरात काम कर रहा है। टीवी चैनल हों या अखबार हो या फिर वेबमीडिया यानि इंटरनेट हो अन्ना के साथ कदम से कदम मिलाकर इस लड़ाई को युद्ध स्तर पर पूरी दुनिया में पहुंचा रहा है। दिन रात पत्रकार, फोटो पत्रकार, तकनीशियन एवं मीडिया से जुड़े अन्य लोग कंधों से कंधा मिलाकर खाने-पीने की परवाह किए बिना भ्रष्टाचार की खिलाफ इस लड़ाई को अपने-अपने तरीकों से लड़ रहे हैं। सच कहें तो भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को दो धुरियां मिलकर लड़ी रही हैं एक आम भारतीय यानि 'अन्ना' और दूसरा भारतीय 'मीडिया'। जिसने पूरे आंदोलन को आज परवाज़ दे दिया है। हालत यह है कि कैमरों की नज़र से कुछ भी छूट पाना असंभव हो गया है।
 
 इस पूरी लड़ाई को अन्ना के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। जिसमें भारत की पूरी आम जनता दिन रात खड़ी है। लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के काम में भारतीय मीडिया का अभूतपूर्व योगदान है। एक-एक टीवी-टीवी चैनलों की 10-10 टीमें दिन रात काम करते हुए अन्ना के आंदोलन को धार देने में जुटी हुई हैं। आखिरकार टीवी पत्रकारिता का मतलब ही है, निरंतरता, उत्तेजना, संयमता, जोश, गंभीरता, प्रतिस्पर्धा, ताज़गी और पूरी उत्तरदायित्व को राष्ट्र और जनहित में हर ख़बर को धार देना है। जिसे सैकड़ों लोगो की टीम दिन-रात मिलकर काम करती हैं। इसमें टीवी पत्रकार, टीवी छायाकार, तकनीशियन, वीडियो एडीटर के अलावां भी कई और पहलू होते हैं जो टीवी स्क्रीन पर आगे और उसके पीछे युद्ध स्तर पर काम करते हैं। ऐसे वक्त में जब कोई बड़ी ख़बर होती है ऐसे हालात में टीवी काम करने वाला हर कोई व्यक्ति आँखें लाल होते हुए भी (बिना सोए) 'राउंड दी क्लॉक' काम करना पड़ता है।
 
खबरों की मारा-मारी अख़बारों में भी कम नहीं होती है। महत्वपूर्ण घटनाओं और ख़बरों को मुख्य पेज की हेडलाइन बनाने के लिए माथा पच्ची करनी पड़ती है। ख़बरों की रणनीति, खबरों की प्राथमिकता, किस ख़बर को कैसी धार दी जाए, किस ख़बर की नली काटी जाए जैसी तमाम पत्रकारिता की तकनीकियों और रणनीतियों की तेयारी टीवी पत्रकारिता के साथ अख़बारों में भी करनी होती है। यही कारण है कि किसी विशेष घटना चक्र के बदलते रूप को देखते हुए अख़बारों के हेडलाइल को रोक कर रखना पड़ता है ताकि सुबह लोगों को सबसे ताजी ख़बर की हेडलाइन पढ़ने को मिले। इसके लिए डाक एडीशन और सिटी एडीशन के समय में देररात तक फेरबदल करनी पड़ती है।
 
आज भारतीय समाज भ्रष्ट व्यवस्थाओं और भ्रष्ट नेताओं के जबड़े में फंसा हुआ है जो उस जबड़े से निकलने के लिए छटा-पटा रहा है। यही एक कारण है कि भारतीय टीवी मीडिया हर पल की एक एक गतिविधि और हर ख़बर को जन-जन तक, पल-पल पहुंचा रहा 24 घंटों। अन्ना के आंदोलन से जुड़े हर गतिविधि, उनके सभी पहलुओं, उनके सहयोगियों के बोले हर शब्द और उनके हाव-भाव को भारतीय मीडिया जन-जन तक पहुंचानें में दिनरात जुटा हुआ है। टीवी चैनलों पर तो लगभग 95 प्रतिशत ख़बरें अन्ना और उनकी भ्रष्टाचार से लड़ी जा रही लड़ाई को पूरी प्राथमिकता और सर्वोच्चता के साथ दिखाई दे रही हैं।
आज टीवी मीडिया, प्रिंट मीडिया और वेबमीडिया अगर अन्ना के आंदोलन से न जुटता तो आज जो जनसमर्थन और जनसैलाब उमड़ा दिखाई दे रहा है वह भीड़ इतनी आसानी से इस महाअनशन में दिखाई दे देती इसमें संदेह होता। आज भ्रष्टाचार से भारत की 99 प्रतिशत जनता त्रस्त है। मीडिया कर्मी तो इससे बाहर नहीं हो सकते हैं। यही कारण है कि टीवी चैनलों ने अपने वरिष्ठ संपादकों को वातानुकूलित केबिनों से निकालकर रामलीला मैदान में तैनात कर रखा है। जिससे ख़बर की परिपक्वता को बनाई रखी जा सके। हां रही बात टीआरपी और सर्कुलेशन की तो वह अलग मुद्दा हो सकता है। व्यवसाय के उस पहलू को इन तरह की घटनाक्रमों और आंदोलनों से नहीं जोड़ा जा सकता।
हां आपसी प्रतिस्पर्धा एक अलग मुद्दा हो सकता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। सरकार से जुड़े हुए लोग अब मीडिया पर ही अंगुली उठाने लगे हैं। कह रहे हैं कि मीडिया सरकार के खिलाफ है और अन्ना एवं रामदेव के साथ है। ऐसे लोगों के बारे में यही कहा जा सकता है ये वे लोग हैं जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और जो 65 सालों से जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। उन्हें अब डर सताने लगा है कि जन लोकपाल बन जाने के बाद वे जनता को लूट नहीं पाएंगे और भ्रष्टाचार नहीं कर पाएंगे। देश के भ्रष्ट नेताओं को अन्ना और ऐसे उमड़ रहे जनसैलाब से सबक लेनी चाहिए। क्योंकि ये लोग ट्रकों में भरकर नहीं लाए जा रहे हैं इस तथ्य को समझ लेना चाहिए देश के इन बेईमान नेताओं को। 
 

Saturday, April 16, 2011

सरकार ने चली चाल, समिति में दरार पड़ने की संभावना?




 
आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
लोकपाल विधेयक पर हुई पहली बैठक में दरार पड़ने की पूरी संभावना नज़र आ रही है। उल्लेखनीय है कि शांति भूषण के सीडी विवाद का फायदा उठाते हुए सरकार ने लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने के लिए बनाई गई संयुक्त समिति की पहली बैठक में नागरिक समिति के कई प्रस्तावों को मानने से इंकार कर दिया है। इसके अलावा सरकार ने नागरिक समिति की ओर से तैयार जन लोकपाल बिन के प्रारूप को भी मसौदे का आधार मानने से इनकार कर दिया। इन तमाम पहलुओं को देखते हुए लगता है कि सरकार और नागरिक समिति के बीच में या तो टकराव होगा या फिर नागरिक समिति जैसा चाहता है वैसा बिल बन पाना असंभव सा लग रहा है। इसके पीछ कई कारण भी हैं। एक तो सरकार ने समिति की वीडियो रिकार्डिंग की मांग को भी खारिज कर दिया है। उसने सिर्फ ऑडियो रिकार्डिंग ही करवाई है। सरकार ने आखिर ऐसा क्यों किया?
 
 
 
उधर जन लोकपाल बिल में जज और मंत्री को निलंबित करने का प्रस्ताव भी सरकार ने नामूंजर कर दिया है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन दोनों प्रस्तावों को संयुक्त मसौदे से हटा दिया गया है। अगर ऐसा हुआ तो अन्ना की प्रतिष्ठा और उनकी मागों पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। सरकार के चतुर मंत्री कपिल सिब्बल ने जरूर करा है कि कहा कि संयुक्त समिति की अब अगली बैठक 2 मई को होगी। उन्होंने यह जरूर कहा कि यह बैठक ऐतिहासिक है, ' जन लोकपाल बिल को मॉनसून सेशन में पेश करना हमारा लक्ष्या है। ' सिब्बयल के मुताबिक, ' सरकार और सिविल सोसायटी के बीच होने वाली बैठकों में जो कुछ भी होगा उसे संयु्क्ते रूप से जनता के सामने रखा जाएगा। '
 

सिविल सोसायाटी के सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा, ' फिलहाल वी डियो रिकॉर्डिंग पर सहमति नहीं बन सकी है। लेकिन बैठक में सभी ने यह माना कि ठोस, कारगर और स्व,तंत्र लोकपाल बिल आज के समय की जरूरत है। उन्होंकने कहा, '2 मई को होने वाली बैठक में जन लोकपाल बिल के मूलभूत सिद्धांतों पर चर्चा की जाएगी। इसके अलावा हर हफ्ते कम से कम एक बैठक जरूरी होगी। इस जॉइंट ड्राफ्ट कमिटी में 5 केंद्रीय मंत्री और 5 सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कमिटी के अध्यक्ष हैं, जबकि वरिष्ठ वकील शांति भूषण इसके सह अध्यक्ष है। मुखर्जी के साथ ही इस कमिटी में गृह मंत्री पी. चिदंबरम, विधि मंत्री वीरप्पा मोइली (संयोजक), मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल और जल संसाधन मंत्री सलमान खुर्शीद भी शामिल हैं।
फिलहाल नागरिक समिति की ओर से अन्ना हजारे, कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े, पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल को शामिल किया गया है। संयुक्त समिति को 30 जून तक लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करना है। 
 

Wednesday, April 13, 2011

बाबा रामदेव को अलग-थलग करने की एक सोची समझी चाल चली जा रही है



 
आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
विधेयक को मानने के लिए सरकार का तैयार होना और दस सदस्यीय समिति का इतनी जल्दी गठन किया जाना क्या जबरजस्त जनदबाव का हिस्सा रहा है, या फिर सरकार और कांग्रेस की एक सोची समझी चाल? क्योंकि इनदिनों कई राज्यों में चुनाव का महौल चल रहा है। फिलहाल इसके पीछे जो सवाल उठे हुए हैं वह कई विवाद खड़े कर चुके हैं, जो आने वाले दिनों में कई और मतभेदों को सामने लाएंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे मसौदे से बाबा रामदेव को जिस तरह से अलग रखा गया वह सबसे बड़ी सरकारी कूटनीतिक चाल रही है।
 
 बाबा रामदेव से भ्रष्ट कांग्रेसी और केंद्र सरकार दोनों खार खाए बैठी हुई है। सूत्र बताते हैं कि केंद्र की सरकार ने अन्ना हजारे के प्रतिनिधियों से साफ कह दिया था कि सब तो ठीक है लेकिन इस पूरे अभियान में बाबा रामदेव का कहीं नाम नहीं आना चाहिए और साथ ही यह भी कह दिया था कि न तो समिति में बाबा रामदेव रहेंगे और न उनकी पसंद का कोई उनका आदमी रहेगा। इसी शर्त पर सरकार ने अन्ना की शर्तों को छटपट मान लिया। यह पता चल रहा है कि सरकार ने यह भी नीति अपनाई हुई है कि इस पूरे अभियान में बाबा रामदेव और उनके समर्थको (अन्ना के साथ जो लोग हैं) में ऐसी फूट डाली जाए जिससे बाबा रामदेव की हवा निकाली जा सके और उन्हें पूरी तरह से अलग-थलग किया जा सके।
 
सरकार फिलहाल इस मकसद में काफी हद तक कामयाब होती नज़र आ रही है। क्योंकि बाबा रामदेव ने पूरे अभियान को शक के दायरे देखना शुरू कर दिया है। उधर केंद्र और कांग्रेस दोनों खुश दिखाई दे रही हैं। कहने का मतलब इस पूरे अभियान में सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। जनलोकपाल विधेयक को लेकर चला जंतर मंतर पर देशव्यापी जनांदोलन में बाबा रामदेव को नीचा दिखाने और उन्हें अलग-थलग करने का सरकार की ओर से एक षडयंत्र रचा गया। इस षडयंत्र का ही नतीजा है कि जो लोग बाबा की अब तक सारी बातों को सिरमाथे चढ़ाते रहे हैं उन्होंने ही उनसे सवाल जवाब शुरू कर दिए और अपनी ही बातों को सर्वोपरि रखा। क्या कारण है कि लोकपाल विधेयक को लेकर बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गये आंदोलन के बावजूद उन्हें इस पूरे मसौदे से बाहर कर दिया गया।
 
सबको पता है भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ सबसे बड़ा मुहिम बाबा रामदेव ने शुरू की। उन्होंने पूरे देश में कुकरमुत्ते की तरह फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन छेड़ रखा है। यही कारण है कि वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों की असुरता को देखते हुए उन्होंने भारत स्वाभिमान पार्टी का गठन किया जिसके माध्यम से बाबा रामदेव ने एक जनांदोलन छेड़ रखा है। यही नहीं उन्होंने इस आंदोलन को पैना बनाने के लिए देश के ईमानदार और कर्मठ लोगों को एक मंच पर लाने का भगीरथ प्रयास किया जिसमें माननीय अन्ना हजारे, किरण वेदी, अरविंद केजरीवाला, स्वामी अग्निवेश प्रशांतभूषण, शशिभूषण आदि लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने के लिए अपने साथ जोड़ा।
अनेक प्रेस कांफ्रेंस में ये सारे लोग बाबा के साथ खड़े दिखे लेकिन वही आज बाबा की बातों को नकारने की हिम्मत दिखाने लगे हैं, आखिर क्यों? जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और 73 वर्षीय अन्ना हजारे को देश के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। हां यह बात अलग है कि अन्ना को पहले महाराष्ट्र के लोग जितना जानते थे उतना भारत के अन्य क्षेत्रों के लोग नहीं जानते थे। लेकिन अन्ना ने अनशन रखकर पूरे देश के लोगों के दिलों में जो स्थान पिछले चंद दिनों में बनाया है उतना व्यापक राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार उन्हें पिछले 73 वर्षों में शायद न मिली हो। इस पूरे अभियान के पीछे एक बहुत बड़ा सुनियोजित समूह काम कर रहा है इसमें किसी को कोई शक नहीं होनी चाहिए। अन्ना का अनशन काम आया और सरकार झुक गयी और अन्ना की जनलोकपाल विधेयक की शर्तों को मानने के लिए सरकार तैयार हो गयी। यह सब इतनी आसानी से नहीं हुआ है।
केंद्र की भ्रष्ट सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह और सरकारी विचौलिए कपिल सिब्बल की स्वामी अग्निवेश ने खुले कंठ से जो प्रशंसा की यह समझ में नहीं आता कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि हमने जो सरकार से मांगी थी सरकार ने हमें उससे भी बढ़कर दे दी है। उन्होंने कपिल सिब्बल की भी ऐसी तारीफ की जैसे कोई चापलूस तारीफ करता है। सबको पता है कि कई राज्यों में चुनाव हो रहे हैं ऐसे में सरकार यह बिल्कुल नहीं चाहेगी कि ऐसा कोई बखेड़ा खड़ा हो जिससे कांग्रेस को इन चुनावों में कोई नुकसान हो। स्वामी अग्निवेश को यह पता होना चाहिए कि समिति के जिसे अध्यक्ष (प्रणव मुखर्जी) बनाया गया है वह देश की अर्थव्यवस्था देखते हैं। और उनका मंत्रालय सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से ग्रसित है। देश को चलाने वाला वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह से भ्रष्टचार से ग्रस्त है।
इस समय देश की आर्थिक हालत यह है कि आम आदमी की कमर टूट चुकी है । यह सभी को पता है कि आम आदमी को दाल-रोटी खाना मुहाल हो गया है? इस देश में गुजर-बसर जानवरों से भी बदतर हो गया है। दूसरे महानुभाव है ए.के एंटोनी। जिनके नेतृत्व में देश की रक्षा की बागडोर थमी हुई है। इस रक्षा मंत्रालय में कितना भ्रष्टाचार फैला हुआ है यह भी जगजाहिर है। कपिल सिब्बल सरकार के दलाल के रूप में जाने जाते हैं। कानून मंत्री की भी कहानी कम दागदार नहीं है। देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार के अध्यक्ष बालाकृष्णन पर भी भ्रष्टाचार के कीचड़ उछल चुके हैं।
यही नहीं बालाकृष्णन के खिलाफ केरल का एक अधिकारी गंभीर आरोप लगा चुका है। वह भी नाइंसाफी करने का। क्या देश के कानून मंत्री इन सब चीजों से परिचित नहीं रहे हैं। ऐसे में स्वामी अग्निवेश का यह कहना कि हमने सरकार से जो कुछ मांगा था उससे भी बढ़कर मिला है, यह भी किसी रहस्य से कम नहीं लगता। इतने भ्रष्ट सरकारी लोगों के रहते क्या जनलोकपाल विधेयक का मसौदा पूरी तरह से पारदर्शी बन पाएगा। क्या इससे इस आसुरी भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर पूरी तरह से लगाम लग पाएगा? यह अगले कुछ महीनों में साफ हो ही जाएगा। 
 

Monday, April 11, 2011

बाबा रामदेव को जूता मारने की कोशिश


१२ अप्रैल २०११
योग गुरु बाबा रामदेव को पहली बार ऐसे हालात का सामना करना पड़ा जब उन्हें सुनने आए लोगों में से कोई इतना गुस्सा हो गया हो कि उन पर जूता उछाल दे। लेकिन, इसके बावजूद रामदेव ने उस शख्स को माफ करने में देर नहीं लगाई। घटना के तुरंत बाद उन्होंने कहा कि ' मैंने उसे माफ कर दिया है।'
 
 दिल्ली से छपने वाले एक अंग्रेजी दैनिक के मुताबिक सीआरपीएक के एक कर्मचारी मितू सिंह राठौर ने रामदेव के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बाकायदा छुट्टी ली थी। वह ग्वालियर में तैनात है, लेकिन कार्यक्रम में शामिल होने वह नागपुर गया था। लेकिन, उसे तब बहुत निराशा हुई, जब बाबा रामदेव योग के बजाय राजनीति पर ही बोलते रहे। वह योग संबंधी उनकी जानकारियों की चर्चा से प्रभावित होकर इस उम्मीद में वहां पहुंचा था कि उसे योग के बारे में कुछ नई जानकारी मिलेगी जिससे वह फायदा उठा सकेगा।
 
लेकिन, जब रामदेव राजनीति पर ही बोलते रहे तो आखिर गुस्से में आकर उसने अपना जूता उतारा और रामदेव पर फेंक दिया। हालांकि जूता उन्हें लगा नहीं, लेकिन उनके काफी पास से गुजरा। इससे वहां अफरातफरी मच गई। राठौर को पकड़ लिया गया। लेकिन बाबा ने तुरंत कहा कि उन्होंने राठौर को माफ कर दिया है जिसका मतलब था कि मामले को आगे न बढ़ाया जाए।
 
 

Saturday, February 5, 2011


क्या जेयनयू सेक्स का अखाड़ा बनता जा रहा है?
 
थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
क्या देश का सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाला शिक्षा का मंदिर, दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानि जेएनयू में सेक्स का रैकेट चल रहा है? फिलहाल इसका कोई प्रमाण थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ के पास तो नहीं है लेकिन एक हिंदी वेबसाइट (विस्फोट डॉट कॉम) ने इसका खुलासा करते हुए दावा किया है कि जो तस्वीर उसके पास है वह न तो मोबाइल कैमरे से लिया गया है न ही हिडन कैमरे से लिया गया है बल्कि बकायदा वीडियो कैमरे से शूट किया गया है। वेबसाइट ने बिल्कुल खुली तस्वीर भी प्रकाशित की है। हमने भी यह तस्वीर उसी वेबसाइट से ली है तस्वीर को धुंधला कर दिया गया है।
 
 अगर जेनयू जैसे शिक्षा के मंदिर में इस तरह का कृत्य चल रहा है तो यह देश के लिए इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। यह तस्वीर जेयनयू के किसी शख्स या विद्यार्थी द्वारा प्रचारित-प्रसारित किया गया है। जो कि दिल्ली के इस विश्वविद्यालय के साथ साथ पूरे शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब तो चर्चा यह भी होने लगी है कि क्या जेयनयू ब्लू फिल्म का अड्डा तो नहीं बनने लगा है। क्योंकि यहां कि भौगोलिक परिस्थितियां भी इस तरह के कुकृत्य के लिए अनुकूल हैं। इस तस्वीर के प्रचारित के बाद जिस लड़की का ब्लू चित्र सामने आया, बताया जाता है कि वह पढ़ाई छोड़कर जा चुकी है जबकि लड़की के साथ यौन संबंध बनाने वाला लड़का अभी भी कैंपस में पढ़ाई कर रहा है।
 
फिलहाल यह तस्वीर कुछ समय पहले की है। जवाहर लाल विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले लड़के लड़कियों के बारे में कहा जाता है कि बहुत सारे लड़के लड़कियां एक साथ ही कमरे में रहते हैं (यानि जिस तरह लड़के कमरे में पार्टनर के तौर पर रहते हैं।) कहा तो यहां तक जाता है कि जेयनयू कैंपस के अंदर इतना ज्यादा खुला महौल है कि वही महौल अब वेश्यावृत्ति जैसे महौल में तब्दील होता जा रहा है। लड़कियों के हॉस्टल में भी लड़के आसानी आ जाते हैं इसी तरह से लड़कों के हास्टल पर भी बात लागू होती है। यह भी कयास लगाया जा रहा है कि कहीं अपनी शानो-शौकत को पूरा करने के लिए लड़कियां खुद ब्लू फिल्म के धंधे में तो नहीं उतर रही हैं? या फिर कोई गिरोह तो सक्रिय नहीं है जेयनयू कैंपस में? इस कांड के बाद से लोगों में इसी तरह की चर्चाएं गर्म हैं।
 

पीएम-सीएम सबका नार्को टेस्ट हो - बाबा राम देव


६ फरवरी २०११
नई दिल्ली।
योग गुरू स्वामी रामदेव ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा कराने वाले कुछ राजनेताओं की जानकारी उपलब्ध होने का दावा करते हुए कहा है कि देश के प्रमुख राजनीतिज्ञों के यदि नार्को टेस्ट कराये जाएं तो काले धन का सच सामने आ जाएगा।स्वामी रामदेव ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि उनके पास कुछ ऐसे राजनीतिज्ञों की सूची उपलब्ध है, जिन्होंने विदेशी बैंकों में काले धन जमा कराए हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस सूची में पक्ष और विपक्ष दोनों के दिग्गज नेता शामिल हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि सूची में शामिल नामों का खुलासा वह सही समय आने पर ही करेंगे।
 
 एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'सीएम से लेकर पीएम तक को अपना नार्को टेस्ट कराने की घोषणा करनी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि इन्होंने जनता के खून-पसीने की कमाई कहां-कहां से लूटी है और कहां कहां लगाए हैं।' उन्होंने कहा कि जो मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री दिवंगत हो चुके हैं उनकी पत्नियों और पुत्र-पुत्रियों के नार्को टेस्ट कराये जाने चाहिए। इस टेस्ट के बाद इन राजनेताओं के एक-एक पैसे का हिसाब सामने आ जाएगा। स्वामी रामदेव ने कहा कि नार्को टेस्ट से ऐसे-ऐसे सच सामने आएंगे, जो शायद विकिलिक्स के खुलासों को भी मात दे देंगे।
 
जब उनसे पूछा गया कि काले धन को लेकर उच्चतम न्यायालय में चल रहे मुकदमे में क्या वह खुद को एक पक्षकार के रूप में शामिल करना चाहेंगे, तो उन्होंने इसकी हामी भरी। उन्होंने कहा कि इस मामले में उच्चतम न्यायालय में छोटे स्तर पर लड़ाई लड़ी जा रही है और वह इसके दायरे को और व्यापक करने पर विचार कर रहे हैं। योग गुरू ने कहा कि पड़ोसी देश चीन में भ्रष्टाचारियों के लिए मृत्युदंड के प्रावधान हैं और भारत सरकार को भी भ्रष्टाचारियों एवं बलात्कारियों के लिए ऐसी सजा के प्रावधान करने चाहिए। वार्ता
 
 

Saturday, January 15, 2011

चार पुस्तकों का लेखक रिक्शा चलाता है

कोई रिक्शा चालक कविताएं लिखता हो तो सुनने में दिलचस्प लग सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक रिक्शाचालक की लिखी चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर आधारित करीब चार सौ कविताओं का संग्रह है। बस्ती जिले के बड़ेबन गांव निवासी रहमान अली रहमान (55) की राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सौहार्द्र, पानी और महंगाई जैसे विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर कविताओं की चार किताबें प्रकाशति हो चुकी हैं।

रहमान ने आईएएनएस से बताया, "कविता लेखन मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। बिना कविताओं के मैं अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता। कविता मुझे जीवन की कठिनाइयों का सामना करना की शक्ति देती है।" रहमान के मुताबिक जब उन्हें सवारी नहीं मिलती तो वह अपने समय का उपयोग कविता लिखकर करते हैं। परिवार की आर्थिक हालत ठीक न होने के चलते रहमान ने 10वीं के दौरान स्कूल छोड़ जीविका चलाने के लिए काम करना पड़ा, लेकिन वह लेखक बनना चाहते थे। वह कहते हैं, "पिता के निधन के बाद मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। उस समय लेखन के क्षेत्र में जाकर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए न तो मेरे पास समय था और न ही संसाधान।"

कुछ समय बाद रहमान कानपुर जाकर एक सिनेमाघर में नौकरी करने लगे। रहमान याद करते हुए कहते हैं कि नौकरी के दौरान उन्हें फिल्मी गाने सुनने का मौका मिलता। बाद में वह खुद गीत लिखने का प्रयास करते। अपने गीतों से रहमान कुछ दिनों में सिनेमाघर के कर्मचारियों के बीच खासे लोकप्रिय हो गए। रहमान जो अभी तक केवल गाने लिखते थे धीरे-धीरे समसामयिक मुद्दों पर लंबी कविताएं लिखने लगे। इसी बीच उन्हें बस्ती जिले स्थित अपने गांव जाना पड़ा, जहां उनकी शादी हो गई। यहां उन्होंने अपनी जीविका चलाने के लिए रिक्शा चलाने का फैसला किया। इस दौरान उन्होंने रिक्शा चलाते हुए कविताएं लिखना जारी रखा। रहमान के तीन पुत्र और तीन पुत्रियां हैं।

वर्ष 2005 रहमान के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया जब एक व्यक्ति की मदद से रहमान की पहली पुस्तक का प्रकाशन हुआ। इसके पीछे दिलचस्प कहानी है। रहमान ने बताया, "आवास विकास कॉलोनी (बस्ती) के पास एक दिन मैं सवारी का इंतजार कर रहा था तभी एक व्यक्ति ने मुझसे कहीं छोड़ने के लिए कहा। उसने देखा मैं कागज पर कुछ लिख रहा हूं। रास्ते में बातचीत के दौरान उसे मेरे कविता लेखन के बारे में पता चला। उसने मुझे स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कानपुर जेल के एक कार्यक्रम में कविताएं सुनाने का मौका दिया।"

रहमान ने उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और इस दौरान उन्हें पता चला कि वह व्यक्ति मशहूर हास्य कवि राम कृष्ण लाल जगमग हैं। बाद में रहमान का सामाजिक दायरा बढ़ा। एक कार्यक्रम में रहमान की मुलाकात कुछ शक्षिकों से हुई। वे कानपुर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) मानस संगम के सदस्य थे। इन लोगों की मदद से वर्ष 2005 में रहमान की पहली पुस्तक 'मेरी कविताए' का प्रकाशन हुआ। तब से रहमान की 'रहमान राम को', 'मत करो व्यर्थ पानी को' सहित तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

एनजीओ मानस संगम से संयोजक बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि रहमान हर मायने में अद्भुत हैं। विपरीत परिस्थितियों में कविता लेखन के निरंतर प्रयास का उसका जज्बा निश्चति तौर पर काबिले तारीफ है। सौजन्य: अरविंद मिश्रा, आईएनएस। नोट - फोटो फाइल यूज के लिए है।

Saturday, January 8, 2011

दूरसंचार मंत्रालय को दूरसंचार घोटाले की जानकारी नहीं!


आकाश श्रीवास्तव
थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
दूरसंचार मंत्रालय जो घोटाले का 2010 का प्रमुख अड्डा बना रहा कहता है कि उसे घोटाले की कोई जानकारी नहीं है। जी हां यह लिखित जवाब दिया है दूरसंचार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने। जिस दूरसंचार घोटाले ने बड़े-बड़ों को नंगा कर दिया, जिसकी वजह से ए .राजा की कुर्सी चली गयी उसी विभाग और मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है कि उसके पास घोटाले से जुड़ी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है? दूर संचार के एक वरिष्ठ अधिकारी ए. के मित्तल, उप महानिदेशक (ए.एस) ने 'थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़' को दिए लिखित जवाब में कहा है कि दूरसंचार स्पेक्ट्रम घोटाले, घोटाले की कुल राशि आदि के बारे में मांगी गयी सूचना का जवाब देने के लिए उसके पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
जिस दूरसंचार घोटाले को लेकर संसद की पूरी शीतकालीन सत्र हंगामे की भेट चढ़ गयी और करोड़ों रूपयों का नुकसान हुआ। जिस घोटाले को लेकर पूरा विपक्ष एक जुट हो गया, जिस घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद संसद की लोक लेखा समिति के सामने पेश होने की बात कह डाली उस घोटाले पर दूरसंचार मंत्रालय का एक वरिष्ठ अधिकारी कहता है कि उसके पास घोटाले से संबंधित जानकारी देने के लिए कोई जवाब नहीं है इससे बड़ा बेहूदापन जवाब और क्या हो सकता है। हमने यह जानकारी आरटीआई कानून के तहत मांगी थी। जिसपर मंत्रालय का इस तरह का जवाब मिला है।
दूरसंचार मंत्रालय जो सन् 2010 का घोटाले का मुख्यकेंद्र बिंदु था के जिम्मेदार सूचना अधिकारियों का यह जवाब कई सवाल खड़े कर देते हैं। पौने दो लाख करोड़ के इस घोटाले की जानकारी मंत्रालय के उन सूचना अधिकारियों के पास क्यों नहीं है जिनकी नियुक्त ही सूचना देने के लिए हुई है और वह जिसके लिए कानून रूप से अधिकृत हैं। क्यो संबंधित मंत्रालय ने संबंधित अधिकारियों को इस तरह की मांगी गयी जानकारी देने से रोक रखा है? हमें ए.के. मित्तल साहब ने जवाब तो नहीं दिया लेकिन सलाह जरूर दे डाली कि आप यह जानकारी वित्त मंत्रालय और सीबीआई से प्राप्त करें जो जांच कर रही है।
देश के इतने बड़े घोटाले की जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई का सहारा लेना पड़ा लेकिन उसका भी समुचित जवाब नहीं दिया गया। जबकि घोटाले से संबंधित जो भी जानकारियां मांगी गयी थी वह बहुत सामान्य थीं। जिसके कुछ अंश दिए जा रहे हैं।
सवाल कुछ इस तरह थे- टेलीकॉम घोटाले (स्पेक्ट्रम) घोटाले में किन लोगों को हाथ है, कुल कितने करोड़ का घोटाला हुआ है। घोटाले की जांच कौन-कौन सी एजेंसियां कर रही हैं। घोटाले की जांच कब शुरू की गयी। नीरा राडिया का नाम किस प्रकार से घोटाले में शामिल हुआ, राडिया के अलावा और किन लोगों के नाम इस घोटाले से जुड़े हुए हैं। क्या इस घोटाले में किसी रूप में किसी मीडिया घराने का नाम भी शामिल है? या कोई मीडिया कर्मी किसी न किसी रूप में इस घोटाले में शामिल हुआ है। ये पूछे गये सवालों के कुछ अंश हैं। जिनके जवाब में कहा गया कि आप ये सवाल वित्त मंत्रालय और सीबीआई से पूछे। यह तो वही बात हुई कि घर में चोरी हुई बात पड़ोसी से पूछने को कह दी जाए।

Monday, January 3, 2011

दर्शक ही नंगा देखना चाहता है तो हीरोईन क्या करे - तनुश्री दत्ता


दर्शक ही नंगा देखना चाहता है तो हीरोईन क्या करे -तनुश्री
थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
३ जनवरी २०११
फिल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने कहा कि दर्शक ही नंगा दिखना चाहते हैं तो इसमें हीरोइनों की क्या दोष है। उनका मानना है कि फिल्मों में कम कपड़ा, रेप के सीन, भडकाऊ दृश्य दर्शकों की मांग पर फिल्मों में डालनी पड़ती है। ऐसा उनका खुद का तर्क है। तनुश्री वर्ष 2004 में "फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स" चुनी गई थीं और उन्होंने वर्ष 2005 में बॉलीवुड में अपने फिल्मी करियर की शुरूआत "आशिक बनाया आपने" से की थी। उनका कहना है, "मैं अपने काम पर ध्यान देना चाहती हूं और ऎसी फिल्में करना चाहती हूं कि लोग उन्हें देखें। लेकिन कभी-कभी बहुत सारी चीजें आपके हाथ में नहीं होती हैं।
बॉलीवुड एक्ट्रेस तनुश्री दत्ता का मानना है कि अभिनेत्रियां फिल्म की पटकथा की वजह से नहीं, बल्कि दर्शकों की मांग के चलते कैमरे के सामने कम कपड़ों में दिखती हंै। तनुश्री का कहना है, "वास्तव में जब लोग आपके पास किसी खास तरह की भूमिका का प्रस्ताव लेकर आते हैं, तो निश्चित तौर पर ऎसा दर्शकों की मांग के कारण ही होता है।" उन्होंने कहा है कि मैंने हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया है। कुछ फिल्में अच्छी बनती हैं, कुछ अच्छी नहीं हो पाती हैं।" उल्लेखनीय है कि तनुश्री पिछले पांच सालों में लगभग 12 हिन्दी और तेलुगू फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उनकी कोई अभी तक ऐसी फिल्म नहीं आयी है जिसे बहुत यादगार के तौर पर कहा जाए।
 http://www.thirdeyeworldnews.co.in/details_links.php?id=1196&name=%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8#1196

फिर कालिख पुती भारतीय सेना की मुंह पर!


थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
3 दिसंबर 2011
भारतीय सेना पर कलंक लगने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी भूमि घोटाला, कभी आदर्श घोटाला, कभी सेक्स स्कैंडल, तो कभी दाल-भात घोटाला आये दिन मीडिया की सुर्खियों में छाये रहता है। अब बारी है आईईडी में काली रेतभरकर बरामद करने की, जिससे सेना के जवानों को पुरस्कार मिलने का सिलसिला जारी रहे, और पुरस्कार के स्वरूप मोटी रकम मिलते रही। आइए देखते हैं इस नये और बड़े घोटाले की कहानी को। जो इस समय मीडिया की 'हेडलाइलों' में शुमार है।
 
 जीं हां ख़बर जम्मू कश्मीर से आयी है। यहां पता चला है कि सेना में शामिल कुछ लोग और अधिकारी पुरस्कार पाने के लिए धमाका करने वाले उपकरणों का सहारा लेते थे। वो भी नकली धमाका करने वाले उपकरण। जी हां आईईडी में काली रेत भरकर आरडीएक्स के साथ बरामदगी में इन आईईडी को दिखाया जाता था। इस काम में सेना के मझले दर्जे के अधिकारियों का हाथ फिलहाल बताया जा रहा है। इसमें कहा जा रहा है कि सेना के उत्तरी और पश्चिमी कमान के मझले दर्जे के अधिकारियों का मिली भगत के बदौलत इस खेल को अंजाम दिया जा रहा था। फिलहाल अधिकारियों और इस खेल के रचनाकारों के बीच की सांठ-गांठ का खुलासा हो चुका है। इस पूरे खेल में सेना के गुप्तचर शाखा यानि मिलिट्री एंटेलीजेंस के लिए काम करने सतनाम सिंह नाम के एक व्यक्ति को भी शामिल बताया जा रहा है।
 
यह पुरानी कहानी पुरस्कार पाने के लिए गढ़ी जाती थी। इस बारे में जम्मू कश्मीर के एक व्यक्ति महबूब डार को हिरासत में लिया गया है। जिसने पूछ-ताछ के दौरान मान लिया है कि उसे नकली आईईडी को सुनियोजित तरीके से लगाने के लिए कहा जाता था, जिसके एवज में उसे 30-50 रूपए तक दिए जाते थे। फरवरी 2009 से अक्टूबर 2010 के बीच उसने कम से कम 50-60 बार इस तरह के कामों को अंजाम दिया है। मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक भारतीय सेना की उत्तरी और पश्चिमी कमान के कुछ अधिकारियों ने सेवा निवृत्ति सैनिकों के साथ मिलकर काली रेत को आईईडी में डालकर इसे प्लांट करते थे। बाद में इसे आरडीएक्स के साथ बरामद करते और पुरस्कार के स्वरूप मिलने वाली भारी भरकम पुरस्कार हथिया ली जाती।
 
वहीं राज्य और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस साजिश को रचने और अमली जामा पहनाने में सैन्य कमांड का कोई न कोई शख्स जरूर शामिल है। डार ने पूछताछ में बताया कि उसे शुरुआत में सेना के साथ काम करने वाले खुफिया कर्मचारी सतनाम सिंह ने रेत, टूटे पत्थर और सीमेंट लाने और डेटोनेटर लाकर उनके बदले में पत्थरों की खदान वालों को पैसे देने का आदेश दिया था। इन सभी को इकट्ठा करके डोडा में एक पुल के पास जिलेटिन की छड़ों के साथ लगा दिया गया। इसके बाद डार ने याद करते हुए बताया कि अगले दिन उसने अखबार में पढ़ा कि सेना ने कुछ बरामद किया है और उसे विस्फोटक के तौर पर पेश किया। अधिकारी के मुताबिक डार ने बताया कि उसे उस दिन के काम के लिए 40,000 रुपये दिए गए। सूत्रों के मुताबिक डार ने बताया कि जब उसे ऐसी फर्जी आईईडी बनाने में महारत हासिल हो गई, तो सेना के कई खुफिया अधिकारियों ने उसे कुछ लोगों को ऐसे फर्जी आईईडी देने को कहा।
आरोपी महबूब डार और पूर्व सैनिक राम प्रसाद से हुई पूछताछ में इनके व मिलिट्री इंटेलिजेंस के कुछ अधिकारियों के बीच गठजोड़ का खुलासा हुआ है। यह फर्जीवाड़ा तब पकड़ में आया जब पुलिस ने 8 अक्टूबर को जम्मू में एमएलए हॉस्टल के पास सेब के बक्से बरामद किए थे। इनमें छेद करके एक काला पदार्थ भरा गया था जिसे विस्फोटक समझा गया। चूंकि इनमें डेटोनेटर भी लगे थे इसलिए हड़कंप मच गया। इनकी फरेंसिक जांच के बाद पता चला कि काला पदार्थ पत्थरों की खदानों से लाई गई रेत है। जांचकर्ताओं के मुताबिक राज्य में एक योजनाबद्ध रैकेट काम कर रहा है जो मिलिट्री इंटेलिजेंस को मिलने वाले सीक्रेट फंड में इस तरह से सेंध लगा रहा है। यह फंड पाकिस्तान से लगने वाले इंटरनैशनल बॉर्डर और लाइन ऑफ कंट्रोल से जानकारी जुटाने के लिए है। जांचकर्ताओं के लिए यह खुलासा आंखें खोलने वाला था क्योंकि डार ने फर्जी आईईडी के बारे में जो जानकारी दी, वह आधिकारिक रेकॉर्ड से मेल खाती थी। ऐसे सभी मामलों में यह पता चला कि ऐसे विस्फोटकों को सेना ने आईईडी वाले स्थल पर नष्ट किया गया बताया।
 

Saturday, January 1, 2011

आरूषि की हत्या मां बाप ने की?


१ जनवरी २०११
केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि कि सीबीआई ने संदेह जताया है कि आरूषि की हत्या के पीछे उनकी मां नूपुर तलवार और राजेश तलवार का हाथ हो सकता है। सीबीआई ने कहा है कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को आरूषि के माता पिता प्रभावित करने की कोशिश की है। इससे पहले सीबीआई ने सबूतों के अभाव में इस केस को बंद करने का फैसला किया है।
 
 इस सिलसिले में 29 दिसंबर को गाजियाबाद की अदालत में पेश सीबीआई की 30 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजेश और नूपुर ने आरुषि के कमरे को धो दिया था और पुलिस को यह कह कर रेलवे स्टेशन की तरफ भेज दिया कि वह उनके नौकर हेमराज को पकड़े. यह बात 16 मई 2008 की सुबह की है। दिल्ली से सटे नोएडा में 14 वर्षीय आरुषि की 15 मई 2008 की रात को उसके घर में ही हत्या की गई। 16 मई को आरुषि की लाश मिलने के अगले ही दिन छत पर हेमराज का भी शव मिला। सीबीआई का कहना है कि आरुषि के माता पिता ने अपनी बेटी का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को प्रभावित करने की कोशिश की।

इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए नूपुर कहती हैं, "ये बिल्कुल बकवास बात है।सीबीआई का यह आरोप हास्यास्पद है। हम तो जांच को आगे बढ़ाने के लिए कहते रहे हैं। "उल्टे उन्होंने सीबीआई पर आरोप लगाया है कि वह इस मामले में यूपी पुलिस की लचर जांच पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। नूपुर के मुताबिक न तो उन्हें और न ही उनके पति को पता था कि आरुषि का पोस्टमार्टम कहां हो रहा है। उनका कहना है कि जब आरुषि की लाश मिली, तभी तड़के पुलिस ने घटनास्थल को अपने नियंत्रण में ले लिया।
 

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