Monday, December 27, 2010

भारतीय सेना ने अपने 'पापों' की जानकारी देने से मना किया?


आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कही जाने वाली भारतीय सेना कितनी भी मजबूत क्यों न हो लेकिन जब इसके अंदर की छिपी कमियों, नाकामियों और भ्रष्ट्राचार से संबंधित जानकारी मांगी गयी तो सेना के संबंधित सूचना अधिकारी ने जानकारी देने से साफ मना कर दिया। आखिर सेना ने संबंधित जानकारी क्यों नहीं दी? जनहित में भारतीय सेना से पूछी गयी ये जानकारियां सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत थी। जिसकी हम आगे बिस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।
 
 कहने को तो भारतीय संविधान में सूचना का अधिकार का प्रावधान है। अभी कुछ समय पहले भारत आए अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने भारत की तमाम प्रशंसाओं में एक प्रशंसा यह भी की थी कि, यहां पर सूचना का अधिकार लेने का एक शानदार कानून है। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस कानून का यानि सूचना का कानून का भी वही ह्रश्य भारत में है जो अन्य कानूनों का है। कानून तो बन गया लेकिन उसमें पेचीदियां इतनी हैं कि कोई भी सूचना जल्दी सीधे तौर से पूरी की पूरी नहीं मिल पाती हैं। बहुत कम ही ऐसे मामले होंगे जिसमें सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गयी सूचना ईमानदारी से पूरी तरह दी गयी हो।
 
सूचना देने वाला अधिकारी इतना घाघ होता है कि सबकुछ देते हुए भी मांगने वाले को कुछ सूचना नहीं देता है। कई तो ऐसे सूचना अधिकारी हैं जो सीधे-सीधे अनर्गल कारण बताकर सूचना देने से एक तरह से साफ इंकार कर देते हैं। ऐसा ही कुछ हाल है भारतीय सेना के संदर्भ में। पिछले दिनों इस दुर्लभ कानून के सहारे भारतीय सेना से कुछ सूचनाएं मांगी गयी थीं। जिसे किसी भी लिहाज से नहीं कहा जा सकता कि उसमें कुछ ऐसी जानकारी थी जो देशहित को चोट पहुंचाता हो। या फिर भारतीय सेना की गोपनीयता को लीक करती हो। कहने का मतलब गोपनीयता को भंग करने वाली सूचना नहीं थी जिसे सेना न दे सकी हो।
 
भारतीय सेना से पूछा गया था कि पिछले तीन सालों में भ्रष्टाचार के कुल कितने मामले दर्ज किए गए। सेना के कुल कितने अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए। उन अधिकारियों के नाम रैंक के साथ बताएं। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ किस तरह से कार्रवाई हुई है। कुल कितने अधिकारियों का कोर्ट मार्शल हुआ है। पिछले पांच सालों में सेना के अधिकारियों के खिलाफ यौन शोषण के कुल कितने मामले दर्ज हुए हैं। दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। इस प्रश्न के जवाब में कहा गया कि आपको इसकी जानकारी नहीं दी सकती है।
भारतीय सेना के सिपाहियों का अधिकारियों के घरों में नौकरों की तरह ली जाने वाली सेवाओं के बारे में जानकारी मांगी गयी थी, कि क्या सेनाधिकारियों के घरों में घरेलू कामों के लिए सेना के जवानों का नौकर के रूप में काम करने का प्रावधान है? अगर किसी अधिकारी के घर में घरेलू नौकर के रूप में कोई सिपाही काम करता पाया जाता है तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई प्रावधान है? इसके जवाब में कर्नल एके. व्यास, जनसूचना अधिकारी, सेना भवन नई दिल्ली ने जवाब दिया कि इसकी जानकारी जन सूचना अधिकार के तहत नहीं दी सकती है। यह तो कुछ प्रश्नों का जवाब था जिसे देने से साफ मना कर दिया गया। इसमें कौन सी ऐसी जानकारी थी जिसे गोपनीयता और राष्ट्रहित के खिलाफ समझी जाए।
जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत ऐसी एक और जानकारी मांगी गयी थी, जिसमें पूछा गया था कि पिछले 10 सालों में किस सेनाध्यक्ष के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के सबसे ज्यादा मामले हुए हैं। सभी सेना अध्यक्षों का नाम पूछा गया साथ में अलग-अलग सालों की जानकारी विस्तार पूर्वक मांगी गयी थी। इसका जवाब दिया गया कि संबंधित जानकारी नहीं दी सकती है। सवाल उठता है आखिर ये जानकारियां क्यों नहीं दी सकती हैं? क्या लोगों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि सेना का सबसे भ्रष्ट सेना अध्यक्ष अभी तक कौन रहा है? भ्रष्टाचार के मामलों में सेना अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। अगर सेना इन सूचनाओं को देने से मना करती है तो यही समझा जाएगा कि सेना ने संबधित जानकारी न देकर अपने गुनाहों और पापों को एक तरह से छुपाने की कोशिश की है।

Friday, December 24, 2010

प्रभु चावला का पर कतरने में पीएमओ का हाथ?


आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़।
नई दिल्ली, २५ दिसंबर २०१०
जब से दूर संचार घोटाला का पर्दाफाश होना शुरू हुआ, तब से एक के बाद एक हस्तियों का नाम किसी न किसी रूप में सामने आने लगा है। जिसमें रतन टाटा, सुनील भारती मित्तल, राजा तो राजा हैं ही, वीर सांघवी, बरखा दत्त, प्रभु चावला और न जाने कितने नाम आने वाले वक्त में अभी और उजागिर होंगे। ये सारे नाम कहीं न कहीं दलाली करने या फिर उससे जुड़े होने के रूप में आये हैं। कहते तो यहां तक है कि एक वरिष्ठ महिला पत्रकार और एक वरिष्ठ पुरूष पत्रकार जिनका अंग्रेजी पत्रकारिता में महारत हासिल है उन्होंने 100 करोड़ रूपए इस दलाली में खाएं हैं। यही नहीं नेपाल में काठमांडू के पास एक रिसोर्ट भी इन धुरंधरों ने मिलकर खरीदा है। फिलहाल हमारे पास इसे साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है। लेकिन कहीं न कहीं इसमें सच्चाई जरूर होगी। कहते हैं न कि वगैर आग के धुंआ नहीं दिखाई देता है।
फिलहाल राजा साहब को खंगालने में सीबीआई जुट गयी है। सीबीआई के सामने हाजिर वे हाजिर हो चुके हैं। इसके अलावा उनके पास कोई चारा भी तो नहीं बचा था। अब जो एक और बड़ा नाम इसमें शामिल होता दिखाई दे रहा है। वह है प्रभु चावला का। प्रभु चावला तो सीधी बात के लिए जाने ही जाते हैं। thirdeyeworldnews.co.inशायद यही कारण है कि सीधी बात ही उन्हें सीधा रास्ता दिखा दिया है। प्रभु चावला देश के गिने-चुने दिग्गज पत्रकारों की पंक्ति में आते हैं। इंडिया टूडे समूह ही उनके नाम से जाना जाता था। एक समय था कि इंडिया टुडे और प्रभु चावला एक दूसरे के पर्यायवाची थे। इसे कहने में हिचक नहीं होनी चाहिए, प्रभु चावला ने जितना टीवी टुडे ग्रुप जो आजतक और इंडिया टुडे के नाम से विशेषतौर पर जाना जाता है, से जितना कमाया नहीं है उससे ज्यादा इस समूह को लाभ पहुंचाया है।
दूर संचार घोटाले में कहीं न कहीं नाम प्रभु चावला का भी जुड़ गया है। उनका नाम किस रूप में जुड़ा वह आने वाले समय में पता चल पाएगा। "थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़" के सूत्रों पर अगर भरोशा करें तो प्रभु चावला को जिन महत्वपूर्ण पदों से टीवी टुडे समूह ने हटाया है उसमें सीधे तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय का दखल था। सूत्र कहते हैं कि पीएमओ यानि प्रधानमंत्री कार्यालय ने टीवी टूडे समूह के मालिकों को कह दिया था कि प्रभु चावला को हटा दिया जाय। इसमें कितनी सच्चाई है यह इसी बात से पता चलता है कि इस समूह को आधार देने वाले प्रभु चावला के अधिकारों में कटौती तो की ही गयी उनके पद को भी छोटा कर दिया गया।उनकी जगह पर एम जे अकबर को लाया गया है। जो इस समय इस समूह के एक तरह से सर्वेसर्वा जैसे हैसियत रखते हैं। कहा जाता है कि एम. जे अकबर कांग्रेसी हैं और प्रभु चावला के बारे में कहा जाता है कि कहीं न कहीं उनका विचार आर.एस.एस के विचारधारा से मेल खाता है।
अगर इसमें जरा भी सच्चाई है तो प्रभु चावला के पर कतरने में भी कहीं न कहीं एक बहुत बड़ी राजनीतिक दांव-पेच का खेल रहा है। कुछ भी हो दूरसंचार के इस घोटाले ने संचार की दुनिया में रहकर संचालन करने वालों के मुखौटों को उतार फेंका है। अगर सीबीआई की जांच में कोई दखल नहीं आया और सीबीआई ईमानदारी से काम करती रही तो कई लोगों के जिंदगी भर प्रतिष्ठा की की गयी खोखली कमाई का पर्दाफाश होने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि इस पूरे मामले पर सीधे भारत की शीर्ष न्यायालय की नज़र है।

Wednesday, December 22, 2010

दूरसंचार घोटाला: क्या सीबीआई प्रभुचावला, बरखा और सांघवी से भी पूछ-ताछ करेगी?



आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़।
22 दिसंबर 2010
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों के रडार पर देश की जो प्रमुख हस्तियां हैं उनमें मीडिया के कई धुरंधरों का नाम भी शामिल बताया जा रहा है। सूत्रों पर अगर भरोशा करें तो सीबीआई जो भारत के उच्चतम न्यायालय के निगरानी में देश के सबसे बड़े करीब पौने दो लाख करोड़ दूरसंचार घोटाले की जांच को आखिरी अंजाम देने में जुटी है उसमें देश के करीब दो दर्जन रुतबेदार लोगों को बाल की खाल निकालने में जुटी हुई है। खबर मिल रही है कि जांच अधिकारी अभी तक करीब 24 लोगों के खातों की जांच कर चुके हैं। जांच के दौरान पता चला है कि कई हस्तियों के खातों से बेहिसाब रकमों को निकाला और डाला गया है।
 
 अभी तक सीबीआई की जांच से पता चला है कि नीरा और राजा के अलावा भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्होंने बहती गंगा में जमकर हाथ धोए हैं। इसमें कई मझले छोटे-बडे राजनीतिक दलाल, सांसद सदस्य और उनके रिश्तेदारों का हाथ है।मीडिया के रूतबेदार लोगों के नाम तो मीडिया में जगजाहिर हो ही चुका है। जिन्होंने दूरसंचार के घोटाले में जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा जमकर खाया है। सबसे चौंकाने वाली बात तो है कि मीडिया जगत के भीष्म पितामह और अनुसूईया कही जानी वाली हस्तियों ने भी पत्रकारिता की आड़ में दलालों की भूमिका अदा की। दूरसंचार के घोटाले की कड़ी में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में इनका भी नाम भी जुड़ गया है।
 
फिलहाल कहा जा रहा है कभी जिसका टीवीटुडे ग्रुप में डंका बजता था यानि प्रभुचावला, एनडीटीवी की चहेती पत्रकार बरखा दत्त, हिंदुस्तान समूह के धुरंधर पत्रकार वीर सांघवी और सुहेल सेठ जैसे लोगों को पूछ-ताछ की श्रेणी में रखा गया है। ये उन लोगों के नाम है जिनका कारपोरेट दलाल नीरा राडिया से संबंध रहें हैं। नीरा राडिया के दलाली वाले इस खेल के फोन टैपिंग मामले में इन सभी के नाम उजागर हो चुके हैं। यहां यह भी बता दें कि टीवी टूडे ग्रूप यानि आजतक और इंडिया टूडे समूह के नाम से जो सबसे ज्यादा जाना जाता है के प्रबंधनतंत्र ने प्रभु चावला के पर कतर चुका है। कभी इस समूह के सर्वे-सर्वा कहलाने वाले प्रभुचावला की जगह एम. जे अकबर को बैठा दिया गया है। लेकिन बाकी संस्थानों ने अपने दलाल पत्रकारों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
 
फिलहाल इन लोगों से सीबीआई दूरसंचार मामले में किसी न किसी रूप में इनसे पूछ-ताछ कर सकती है। जब पूछ-ताछ होगी तो जांच की पहलू जरूर चमकदार होगी। इन्हें जांच एजेंसियां अदालत में गवाह के तौर पर भी पेश कर सकती हैं। उधर सीबीआई ने जब नीरा राडिया से पूछताछ की प्रक्रिया शुरू की तो उन्होंने जांच अधिकारियों से कहा कि वे सीधे गृहमंत्री से के समाने अपना पक्ष रखेंगे। उनकी इस दुस्साहसी पर जांच अधिकारी को कड़ाई दिखानी पड़ी और कहा कि पहले सवालों का जवाब दो बाद में गृहमंत्री से मिलना। कहा तो यहां तक जा रहा है कि एक डीआईजी स्तर के अधिकारी ने नीरा को कसकर डांटा भी।
ख़बर यह भी है कि गृहमंत्रालय कवर करने वाले पत्रकारों से नीरा राडिया मदद लेने की कोशिश में हैं। मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक नीरा राडिया देश के गृहमंत्री से कई बार मिल चुकी हैं। उधर राजा जो इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार हैं सीबीआई उन्हें घेरे में लेने के लिए कवायद करने में जुटी हुई है। फिलहाल जैसे जैसे सीबीआई की जांच में तेजी आएगी पूरा मामला प्याज के छिलके की परत की तरह निकलना शुरू होगा। तब पता चलेगा कि पूरे मामले में कौन लोग थे और उन्होंने कैसे दूरसंचार मंत्रालय को अपना बपौती समझकर जमकर लूटपाट मचाई।
 

Sunday, December 19, 2010

मेरे माता-पिता राजीव से मेरी शादी नहीं चाहते थे - सोनिया गांधी, विकीलीक्स का खुलासा

मेरे माता-पिता राजीव से मेरी शादी नहीं चाहते थे - सोनिया गांधी, विकीलीक्स का खुलासा

नई दिल्ली
१९ दिसंबर २०१०
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कैलीफोर्निया के गवर्नर की पत्नी से स्पष्ट रूप से कहा था कि उनके माता-पिता राजीव गांधी के साथ उनकी शादी के खिलाफ थे। यह खुलासा विकिलीक्स द्वारा लीक किए गए अमेरिकी दूतावास के संदेशों से हुआ है।गांधी ने अगस्त, 2006 में अर्नाल्ड श्वार्जनेगर की पत्नी, मारिया श्राइवर से यह भी कहा था कि वह किसी दिन इस पूरी कहानी पर किताब लिखेंगी कि उन्होंने 2004 में प्रधानमंत्री पद क्यों ठुकरा दिया था।

गांधी और श्राइवर की मुलाकात से सम्बंधित यह संदेश चार अगस्त, 2006 का है, और इसे गोपनीय के रूप में चिन्हित किया गया है। इसका शीर्षक है "ए गैरुलस सोनिया गांधी ओपेन्स अप टू मारिया श्राइवर।" इसमें यह संकेत किया गया है कि सोनिया ने कितनी खुलकर बातचीत की थी। श्राइवर ने भारत के अपने आधिकारिक दौरे में सोनिया से मुलाकात की थी। संदेश के एक अंश में संकेत किया गया है कि शायद दोनों की बातचीत को वहां मौजूद अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों ने टेप कर लिया था। संदेश में कहा गया है, "गांधी ने कहा था कि उनके माता-पिता ने राजीव गांधी के साथ उनकी शादी का विरोध किया था, लेकिन वह नाराज हो गई थीं और उन्होंने राजीव से शादी कर ली थी।"

ज्ञात हो कि राजीव गांधी 1984 में प्रधानमंत्री बने थे और 1991 में उनकी हत्या कर दी गई थी। संदेश में कहा गया है कि सोनिया अपने उस निर्णय के बारे में नहीं बताना चाहती थीं कि उन्होंने 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की जीत के बाद प्रधानमंत्री पद क्यों ठुकरा दिया था। सोनिया ने श्राइवर से कहा था, "मुझसे इस बारे में अक्सर पूछा जाता है, लेकिन मैं लोगों से कहती हूं कि मैं किसी समय इस पूरी कहानी पर किताब लिखूंगी। आईएनएस।

Wednesday, December 15, 2010

एनडीटीवी और आईसीआईसीआई बैंक ने मिलकर देश के साथ किया महाघोटाला?


 
विपुल कुमार के साथ
आकाश श्रीवास्तव, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली, १५ दिसंबर २०१०।
देश के दो प्रमुख कार्पोरेट कंपनियों ने देश को जो चूना लगाया है उसे सरकार ने क्यों दरकिनार किया, यह समझ से परे है। लेकिन जनहित में क्या सरकार आईसीआईसीआई बैंक और एनडीटीवी के गुनाहों को जांच के जरिए उजागर करके देश की जनता को जवाब देना चाहेगी? असल में इन दोनों कंपनियों ने मिलकर देश के साथ जो घोटाला किया है वह चौंकाने वाला है। आइए जानते हैं क्या है यह झंकझोर देने वाला घोटाला।
 
 
एनडीटीवी लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनियों ने, आईसीआईसीआई के साथ मिलकार सोची-समझी रणनीति के तहत भारी-भरकम वित्तीय घोटाले को अंजाम दिया। एनडीटीवी और आईसीआईसीआई की इस मिलीभगत से, एनडीटीवी ने भरपूर कमाई की और अपने शेयरों के वैल्यूएशन को मनमाने तरीके से बढ़ाया।

एनडीटीवी ने अपने इन शेयरों की मिल्कियत, बाद में आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम कर दी। एनडीटीवी और आईसीआईसीआई ने, साल दो हज़ार आठ में जुलाई और अक्टूबर महीने के बीच एक डील पर साइन किया। इस दौरान एनडीटीवी ने भारी संख्या में स्टॉक मार्केट से शेयरों के खरीदने की पहल की। इस खरीद में हर शेयर की कीमत चार सौ उन्चास रुपये प्रति शेयर थी।
 
उन दिनों हर स्टॉक मार्केट में शेयरों की कीमत आसमान पर थी और ये उम्मीद जताई जा रही थी कि एनडीटीवी के शेयरों में और भी उछाल देखा जा सकता है। यही वजह रही कि एनडीटीवी, अपने ही शेयरों को फिर से खरीदना चाहा। लेकिन चूंकि एनडीटीवी के पास लिक्विडिटी कम थी इसलिए उसने इंडिया बुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज़ कंपनी से तीन सौ तिरेसठ करोड़ रुपये उधार लिया। उधारक से मिली भारी रकम के बाद एनडीटीवी के शेयरों की संख्या बढ़कर नब्बे लाख सत्तर हज़ार दो सौ संतानवे हो गई। इस सारे खेल को एनडीटीवी ने बड़ी ही योजनाबद्ध तरीके से जुलाई दो हजार आठ में अंजाम दिया।
 
अगस्त दो हज़ार आठ में, सब-प्राइम क्राइसिस की वजह से दुनिया के सारे स्टॉक मार्केट में उठा-पटक का दौर शुरू हो गया और कई शेयर मार्केट धराशायी हो गए। देश का मुख्य सूचकांक सेंसेक्स बाइस हज़ार से लुढ़ककर दस हज़ार पर आ गया। ऐसी बदहाली में एनडीटीवी के शेयरों की वैल्यूएशन भी तीन सौ चौरानवे रुपये प्रति शेयर से घटकर सौ रुपये प्रति शेयर पर आ गई।
साथ ही, इंडिया बुल्स से मिले लोन की वैल्यूएशन भी बुरी तरह से गिर गई। उसके बाद, इंडिया बुल्स ने एनडीटीवी पर लोन वापस करने के लिए लगातार दबाव बनाने लगा। लेकिन एननडीटीवी के पास इंडिया बुल्स को वापस करने के लिए पैसे नहीं थे। तो पैसे के लिए एनडीटीवी ने एक बार फिर से आईसीआईसीआई का रूख किया। आईसीआईसीआई ने एनडीटीवी को अक्टूबर दो हज़ार आठ में तीन सौ पचहत्तर करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया। आईसीआईसीआई ने ये कर्ज़, आरआरपीआर के पास रखे एनडीटीवी के शेयरों को गिरवी के एवज में दिया। आरआरपीआर के इन शेयरों की संख्या थी, सैंतालीस लाख इकतालीस हज़ार सात सौ इक्कीस शेयर जिसके बदले में एनडीटीवी को ये कर्ज़ मिला। इनमें हर शेयर की औसतन कीमत चार सौ उन्तालीस रुपये प्रति शेयर थी जिसकी कुल वैल्यूएशन दो सौ आठ करोड़ रुपये आंकी गई।
एनडीटीवी के वित्तीय घोटाले का ये पहला सफल नमूना था। एनडीटीवी ने अपने हथकंडो से ये साबित कर दिया कि कम पैसे में किस तरह भरपूर मुनाफा कमाया जा सकता है...किस तरह से स्टाक मार्केट में शेयरों की वैल्यूएशन की बढ़ाई जा सकती है....और अपने फायदे के लिए किस तरह कानून के प्रावधानों को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। कोलेटरल के रुप में जिन शेयरों की कीमत चार सौ उनतालीस रुपये आंकी गई थी, तेईस अक्टूबर दो हज़ार आठ तक, बाज़ार में उसकी असली कीमत मात्र निन्यानवे रुपये थी। कोलेटरल की कुल वैल्यू सिर्फ चियालीस दशमलव नौ चार करोड़ रुपये थी जो एनडीटीवी के पूरे कर्ज़ का सिर्फ आंठवा हिस्सा थ। आईसीआईसीआई जो उस समय पब्लिकट्रेडिंग कंपनी थी ने प्रणव राय और राधिका राय की तरफ से घोटाले को लेकर कई झूठे कमिटमेंट्स किए।
प्रणव राय और राधिका राय उस समय आरआरपीआर कंपनी के दो ही शेयर होल्डर थे। मज़े की बात ये है कि आरआरपीआर के पास उस वक्त, एनडीटीवी का एक भी शेयर नहीं था और उस कंपनी की मिल्कियत मात्र एक लाख रुपये की थी।
हिला देने वाली बात ये भी थी कि आरआरपीआर के डायरेक्टर प्रणव राय औऱ राधिका राय को तिहत्तर दशमलव नौ एक करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज भी मुहैया हो गया। ये कर्ज़ उस रकम से दी गई जिसे एनडीटीवी ने आईसीआईसीआई से लोन लेने के बाद हासिल किया था। आईसीआईसीआई से इस तरह का कर्ज़ लेना साफ तौर पर SARFAESI Act of 2002 का उल्लघंन था।
मज़े की बात ये है कि कॉरपोरेट मंत्रालय को, एनडीटीवी के इस पूरे घपले और तमाम ट्रान्जैक्शन्स की जानकारी थी लेकिन कॉरपोरेट मंत्रालय, इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे रहा। साथ ही, देश के रिजर्व बैंक ने भी इस मामले पर पूरी चुप्पी बनाए रखना ठीक समझा।
इस मामले से जुड़े तहकीकात में जुटी, सीबीआई ने सिर्फ एक महीने पहले, एलआईसी के बड़े अधिकारियों, को दो हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज़ घोटाले में गिरफ्तार किया है। जहां तक एनडीटीवी का सवाल हैं तो वो विदेशों से भारी मात्रा में कर्ज़ के रूप में रुपये उठाता है और अपनी सहयोगी कंपनियों को विदेशों में ही पैसों के बराबर कंपनियों के शेयर बेच देता है। एनडीटीवी इन शेयरों को ऐसे रेट पर बेचता है जिसका असली कीमत बाज़ार में कुछ और ही होती है।
जैसे- एनडीटीवी के शेयर को सात सौ छियहत्तर रुपये प्रति शेयर की दर से बेचा गया जबकि उन शेयरों की मार्केट वैल्यू मात्र दस रुपये प्रति शेयर थी। लेकिन शेयरों की बिक्री से होने वाले मुनाफे का फायदा किसी भी तरह भारतीय निवेशकों को नहीं दिया गया। बाद में, एनडीटीवी के शेयरों में लगातार गिरावट होती चली गई और उसे लागातार घाटा होता चला गया। एनडीटीवी के बिज़नेस का ज्यादातर फायदा उसकी विदेशी सहयोगी कंपनियों के कारोबार पर निर्भर करता है जिसमें उसकी लंदन स्थित कंपनी प्रमुख है।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सिर से पैर तक घोटाले में डूबी एनडीटीवी कंपनी किस तरह अपनी साख बचा पाती है और घोटालों से किस तरह अपनी कंपनी को उबार पाती है। असल में हमने जो कुछ लिखा है वह महज एक अंग्रेजी संस्करण का अनुवाद है। जिसका मुख्य उद्देश्य है इस घोटाले को अपने थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ के पाठकों तक पहुंचाना हैं। आप चाहें तो नीचे दिए गये लिंक को अपने इंटरनेट ब्राउसर पर कॉपी करके अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं।
http://www.sunday-guardian.com/a/1082

Saturday, December 11, 2010

एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय का देश के साथ महाघोटाला?


विपुल कुमार
वरिष्ठ पत्रकार के साथ
आकाश श्रीवास्तव, ११ दिसंबर २०१०।
सरकार अगर इस सच्चाई को ईमानदारी से पता करे और इसकी जांच कराए तो भारत का मक्का कहे जाने वाला मीडिया घराना एनडीटीवी की प्रतिष्ठा की सारी धज्जियां उड़ जाएंगी। ईमानदारी और मीडिया का भीष्म पितामह कहे जाने वाले एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय का प्रतिष्ठा का नकाब अगर उतरा तो उनका बेईमान चेहरा दुनिया के सामने होगा। एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय के ऊपर पहले भी चोरी चकारी और बेईमानी का आरोप लगता रहा है। इन्हीं चीजों के खिलाफ प्रणय रॉय के खिलाफ सीबीआई जांच भी हुई थी।लेकिन सीबीआई ने कोर्ट में यह बताकर मामले को रफा-दफा कर दिया कि एनडीटीवी के मैनेजिंग डॉयरेक्टर प्रणय राय के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है।
फिलहाल यह मामला १९९७-१९९८ का पुराना है। वैसे प्रणय रॉय के टीवी चैनल में खुद इनकी खास पत्रकार बरखादत्त के खिलाफ दूरसंचार घोटाले में दलाली करने का आरोप लग चुका है। नीरा राडिया और बरखादत्त के बीच दलाली को लेकर जो सौदा हुआ उस टेप का अंश यू ट्यूब पर अब भी पड़ा हुआ है। कहते हैं चमकती कालीन को अगर उठाकर देखें तो उसके अंदर धूल-धूल ही भरा हुआ होता है। आइए मीडिया के इस घोटाले बाज की दूसरी करतूतों के बारे में भी जानते हैं।
नीरा रडिया विवाद और वित्तीय घोटाले की लहरों में डूबते-उतराते मीडिया मुगल एनडीटीवी पर अब विदेशी पार्टनरों के साथ मिलकर टैक्सचोरी और कारोपोरेट लॉ के साथ खिलवाड़ करने जैसे गंभीर आरोप भी लग चुके हैं। एनडीटीवी ने, साल दो हज़ार छह में एनडीटीवी नेटवर्क पीएलसी के नाम से इंगलैंड में अपनी एक सहयोगी कंपनी खोली। इंगलैंड में खोले गए इस कंपनी का बैलेंसशीट भारत में नहीं भरा जाता था। एनडीटीवी ने अपनी इस सहयोगी कंपनी की मदद से भरपूर पैसा बनाया और अपनी इस भारी-भरकम रकम का निवेश अपने दूसरे चैनलों में उसके प्रचार-प्रसार से किया। एनडीटीवी के सहयोगी चैनलों में, बिक चुके चैनल एनडीटीवी इमेजिन के अलावा, एनडीटीवी लाइफस्टाइल, एनडीटीवी लैब्स, एनडीटीवी कनवर्जेंस और एनजीईएन मीडिया सर्विसेज़ शामिल हैं। इंगलैंड में फलने-फूलने वाली एनडीटीवी की इस सहयोगी कंपनी ने धड़ल्ले से शेयरों की खरीद-फरोख्त की। अभी भी एनडीवी के सारे कारोबारी सौदे एनडीटीवी की इसी सहयोगी कंपनी के ज़रिए की जाती है लेकिन ऐसे सौदों से होने वाले मुनाफे पर भारत सरकार को किसी भी तरह का टैक्स नहीं दिया जाता है।
एनडीटीवी ग्रुप ने अप्रैल दो हज़ार आठ और सितंबर दो हज़ार नौ के बीच आठ सौ चार करोड़ से भी ज्यादा की कमाई की। इसमें नौ सौ बयासी करोड़ रुपये से भी ज्यादा की रकम एनडीटीवी ने अपनी झोली में बटोरी। इसमें ज्यादातर कमाई विदेशी संसाधनों के ज़रिए की गई थी। इनमें एनडीटीवी की इंगलैंड और नीदरलैंड की सहयोगी कंपनियां खास तौर पर शामिल हैं। एनडीटीवी नेटवर्क पीएलसी कंपनी का रजिस्ट्रेशन इंगलैंड में किया गया जिसका पता है---Seventh Floor, 90 High Holborn, London, WC1V 6XX
एनडीटीवी के इंगलैंड के इस दफ्तर में ओल्सवांग सोलिसिटर का दफ्तर भी चलता है। ओल्सवांग कोसेक लिमिटेड एनडीटीवी की पीएलसी कंपनी के लिए बतौर कंपनी सेक्रेटरी काम करता है। साथ ही, एनडीटीवी की कई दूसरी कंपनियों के लिए कंपनी सेक्रेटरी का काम करता है। ओल्सवांग होल्डिंग्स और ओल्सवांग एलएलपी के साथ दूसरी कंपनियां भी इसी दफ्तरसे काम करती है। लेकिन एनडीटीवी पीएलसी कंपनी में काम करने वाला कोई कर्मचारी उसका अपना कर्मचारी नहीं है।
एनडीटीवी के इस भारी घोटाले का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इंगलैंड में चलने वाली उसकी कंपनियों से जुड़ी तमाम जानकारियां जैसे बैलेंसशीट, स्टेटमेंट्स इंगलैंड की वेबसाइट्स के अलावा कहीं भी उपलब्ध नहीं है। यही वजह है कि इस घपलेबाज़ी से जुड़ी कई ज़रूरी जानकारियां हासिल करने में मुश्किल आ रही हैं। एनडीटीवी की सहयोगी कंपनी, एनडीटीवी बी-वी एक डच कंपनी है और इस कंपनी के बारे में सिर्फ इतनी ही जानकारी है कि ये एनडीटीवी की एक सहयोगी कंपनी है।
हैरंतगगेज़ खबर ये है कि, साल 2006-2007 में इन तमाम कंपनियों के एकाउंट्स का जिक्र, एनडीटीवी के बैलेंसशीट या सालाना रिपोर्ट में नहीं किया गया है। मजे की बात ये है कि एनडीटीवी ने इसी साल टैक्स में छूट का दावा पेश किया। लेकिन देश के कानूनी प्रावधानों के मुताबिक, सालाना रिपोर्ट के साइन होने के पहले ऐसी किसी छूट का दावा वैध नहीं माना जाता। कानून के मुताबिक, कोई भी कंपनी, करों में छूट का दावा कंपनी एक्ट 1956 के दो सौ बारह (आठ) के तहत कर सकता है।
बाइस मई, दो हज़ार सात को एनडीटीवी के बैलेंसशीट पर साइन होने की बात कही गई लेकिन एनडीटीवी ने चौबीस मई, दो हज़ार सात को यानि दो दिन की देरी से कॉरपोरेट मंत्रालय में नौ सहयोगी कंपनियों के लिए छूट का दावा पेश किया। इनमें एनडीटीवी की सभी सहयोगी कंपनियां भी शामिल थीं। सूत्रों के मुताबिक, एनडीटीवी ने कयास लगाया था कि अकाउंट्स पेपर पर साइन करने से पहले उसे ये छूट हासिल हो जाएगी। लेकिन एनडीटीवी को ये छूट आठ जून दो हजार सात से पहले हासिल नहीं हो पाई।
रिपोर्ट के मुताबिक, कॉरपोरेट मंत्रालय ने जानबूझकर इस घपले की अनदेखी की। कंपनी मामलों के रजिस्ट्रार ने भी एनडीटीवी के इस वित्तीय घपलेबाज़ी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में सफल नहीं हो पाया। एनडीटावी घोटाले की तह तक पहुंचने के लिए ये जानना दिलचस्प होगा कि इस मीडिया मुगल ने किस तरीके से अपने काम को अंजाम दिया। ये साल 2006-2007 की बात है जब एनडीटीवी ग्रुप ने, कानूनी वैधता के साथ नीदरलैंड में एनडीटीवी बी-वी के नाम से एक कंपनी खोली। एनडीटीवी बी-वी ने बदले में, इंगलैंड में एनडीटीवी नेटवर्क पीएलसी के नाम से दूसरी कंपनी खोली। एनडीटीवी ग्रुप ने एनडीटीवी बी-वी में करीब साढ़े सत्तावन लाख के शेयर्स का निवेश किया और इस तरह एनडीटीवी बी-वी को सौ फीसदी का पार्टनर बना लिया। बदले में, एनडीटीवी बी-वी ने इंगलैंड की पीएलसी को अप्रत्यक्ष पार्टनर कंपनी बना लिया। एनडीटीवी नेटवर्क बी-वी ने करीब साढ़े तैंतालीस लाख करोड़ से भी ज्यादा के शेयरों को इंगलैंड की एनडीटीवी नेटवर्क पीएलसी को बेच दिया। एनडीटीवी के इस कारोबारी लेनदेन की वजह से नीदरलैंड में फलने-फूलने वाली एनडीटीवी नेटवर्क बी-वी पूरी तरह से भारतीय कंपनी के रूप में तब्दील हो हो गया।
एनडीटीवी ग्रुप, देशी और विदेशी सहयोगी कंपनियों के सहयोग और मिली-भगत से भारत में पांच कंपनियां बनाई और उनके नाम पर चैनल भी खोले। इस तरह से 2007 में एनडीटीवी ग्रुप ने एनडीटीवी इमेजिन, एनडीटीवी लाइवस्टाइल, एनडीटीवी लैब्स, एनडीटीवी कन्वर्जेंस और एनजीईएन मीडिया स्रविसेज़ पांच चैनल लॉन्च किया। अगर पार्टनरशिप की बात करें तो इन पांचो चैनल में एनडीटीवी एनजीईएन का जैनपैक के साथ फिफ्टी परसेंट की पार्टनरशिप है। इन चैनल के अलावा एनडीटीवी की, एनडीटीवी न्यूज़ लिमिटेड,वैल्यू लैब्स और एस्ट्रो ऑल एशिया नेटवर्क्स पीएलसी, मलेइशिया पर भी मिल्कियत है।
साल 2006-2007 में भारतीय एनडीटीवी ने, कर्ज़ और स्टॉक ऑप्शन्स या ईएसओपी के नाम पर एक सौ पचहत्तर मिलियन रुपये जुगाडे। हांलाकि रिपोर्ट में ये बात साफ है कि साल दो हजार छह-सात में एनडीटीवी की सालाना रिपोर्ट और बैलेँशशीट में इन सहयोगी कंपनियों के अकाउंट्स या खातों का कोई जिक्र नहीं है। यहां पर एक बड़ा सवाल, सरकार और दूसरी एजेसियों पर ये खड़ा होता है कि ये है कि क्या ये सब सिर्फ इसलिए किया गया एनडीटीवी और उसकी देशी और विदेशी सहयोगी कंपनियों के सारे वित्तीय घोटाले और गड़बड़झाले पर पर्दा डाला जा सके और मीडिया से जुड़े नामचीन हस्तियों को बचाया जा सके....
इकत्तीस मार्च, 2008 के वित्तीय स्टेटमेंट के मुताबिक, एनडीटीवी ने और तेईस मई, दो हज़ार आठ को अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ एक शेयर होल्डर्स एग्रीमेंट किया। इन सहयोगी कंपनियों में एनडीटीवी बी-वी, एनडीटीवी बीवी नेटवर्क्स मुख्य तौर पर शामिल हैं। एग्रीमेंट का मकसद था कंपनियों में छब्बीस फीसदी का अप्रत्यक्ष स्टेक हासिल करना जिसे बाद में पूरी तरह डायल्यूट किया जा सके।
अगर इस स्टेक का अगर विनिवेश किया गया होता तो इसकी कीमत मौजूदा रेट के मुताबिक एक सौ पचास मिलियन अमेरिकी डॉलर की होती। बाद में, एनडीटीवी इंडिया ने भारी मात्रा में और कर्ज़ लिया जिससे भारत में मौजूद उसकी कंपनियों के खर्चे का वहन किया जा सके। इस दौरान, एनडीटीवी की इंगलैंड में चलने वाली सहयोगी कंपनी ने भी सौ मिलियन अमेरिकी डॉलर की भारी कमाई की। ये कमाई कन्वरटिबल बॉन्ड्स को प्राइवेट संस्थानों में प्लेस करके हासिल की गई।
कन्टिन्जेंट लाइबिलिटी के तहत एनडीटीवी की तरफ से, साल दो हज़ार सात और आठ में जारी सालाना रिपोर्ट में ये कहा कहा गया कि एनडीवी नेटवर्क पीएलसी ने सौ मिलियन की भारी कमाई की। कंपनी ने साल दो हज़ार बारह में जारी कन्वर्टिबल बॉन्डस् के ज़रिए ये कमाई की। इस बात का जिक्र रिपोर्ट के पृष्ट सड़सठ में किया गया है। इसके साथ एनडीटीवी ने एक अंडरटेकिंग कंपनी से ये कहा कि जब कभी ज़रूरत पड़े तो वो अपनी सहयोगी कंपनी एनएनपीएलसीसी के लिए कॉरपोरेट गारंटी हासिल करे। साथ ही, कंपनियों के बीच शेयरों के विनिवेश से हासिल की जाने वाली रकम का अनुमान बीस से तीस फीसदी तक लगाया गया। लेकिन किन कंपनी के अधिकरियों के साथ ये सारी बातें तय हुईं और तमाम योजनाएं अंजामम दी गईं इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है। इस बीच, अक्टूबर दो हज़ार नौ में एनडीटीवी ने एनबीसीयू के छब्बीस फीसदी शेयरों को फिर से खरीदने की घोषणा की।
दिसंबर दो हज़ार नौ में, एनडीटीवी ने बीएसई को इस बात की जानकारी दी कि एनडीटीवी, अपने चैनल एनडीटीवी इमेजिन के अप्रत्यक्ष स्टेक की बिक्री के लिए एक कंपनी, टर्नर एशिया पैसेफिक वेंचर के साथ सशर्त एग्रीमेंट कर चुका है। पूरे ट्रांजैक्शन की कीमत एक सौ सत्रह मिलियन डॉलर तय की गई है। एग्रीमेंट क मुताबिक, अगर एनडीटीवी के छियालिस फीसदी शेयरों को बेचा जाए तो सड़सठ मिलियन रुपये की कमाई फौरन की जाती है।
साथ ही एग्रीमेंट में, टीएपीवी के साथ पचास मिलियन डॉलर की नई साझेदारी की बात भी कही गई। लेकिन एनडीटीवी ने ये शर्त रखी कि वो शेयर तो जारी करेगा लेकिन एनडीटीवी नेटवर्क पीएलसी, इमेजिन में अपने पांच फीसदी का स्टेक जारी रखेगा। साल दो हज़ार आठ नौ के सालाना रिपोर्ट के मुताबिक एनडीटीवी ग्रुप ने अपनी सहयोगी कंपनियों मे चार सौ करोड़ रुपये का निवेश किया। इसमें, एनडीटीवी इमेजिन में तीन सौ तिरासी दशमलव चार तीन करोड़ रुपये, एनडीटीवी कन्वर्जेंस में चौदह दशमलव छह चार करोड़ रुपये, और एनडीटीवी लाइफस्टाइल में उन्तीस कोरड़ रुपये का निवेश किया गया। हालांकि अभी तक, इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि कौन सी पार्टियां इस पूरी निवेश प्रकिया में शामिल थीं।
इंगलैंड स्थित एनडीटीवी की सहयोगी कंपनी जिसके इमेजिन में काफी शेयर्स हैं, ने साल दो हज़ार नौ में, इमेजिन के वैल्यूएशन को बुलंदियों तक पहुंचा दिया। सात जुलाई, दो हज़ार नौ में एनडीटीवी के भरे फॉर्म दो के मुताबिक, पीएलसी ने इमेजिन के तेरह करोड़ चौसठ हज़ार दो सौ आठ शेयरों को खरीदा। शेयरों की बिक्री से एनडीटीवी ने एक सौ पांच दशमलव नौ आठ करोड़ रुपये की कमाई की। इसमें हर शेयर की कीमत सात सौ छियत्तर रुपये प्रति शेयर थी। ये तमाम खरीद-फरोख्त गुपचुप तरीके से की गई और इससे जुड़ी किसी भी जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया।
मसलन�पूरी वैल्यूएशन कैसे की गई, क्यों किसी विदेशी संस्था को इसमें शामिल किया गया, कौन सी कंपनी इस पूरी प्रक्रिया में शामिल की गईं। इस पूरे सौदे के वक्त, बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में एनडीटीवी के शेयरों की कीमत एक सौ छब्बीस रूपये प्रति शेयर थी। ज़ाहिर है, एनडीटीवी की इंगलैंड की सब्सिडियरी कंपनी ने एनडीटीवी के शेयरों को मौजूदा वैल्यूएशन के मुकबाले छह गुने ज्यादा कीमत पर बेचा।
तीन दिसंबर को भरे गए फॉर्म दो के मुताबिक, ब्रिटिश सब्सिडियरी ने कुल नौ लाख बीस हज़ार छह सौ बत्तीस रुपये के शेयर बेचे। इनमें हर शेयर की कीमत सात सौ अठहत्तर रुपये थी। प्रीमियम के साथ कुल रकम बहत्तर दशमलव पांच सात करोड़ रुपये थी। नवंबर दो हज़ार दस की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका स्थित स्क्रिप्स नेटवर्क कंपनी की, एनडीटीवी लाइफस्टाइल में उनहत्तर फीसदी हिस्सेदारी है जिसकी वैल्यूएशन पचपन मिलियन डॉलर है। दो हजार दस के रिपोर्ट के मुताबिक जब एनडीटीवी पीएलसी ने सौ मिलियन कूपन बॉन्ड को बेचने की घोषणा की तो एनडीटीवी के शेयरों में सात फीसदी की उछाल दर्ज़ की गई। इस तरह एनडीटीवी ने कंपनियों की साझेदारी और शेयरों की खरीद-फरोख्त से भरपूर दौलत कमाई, उसे विदेशों में सुरक्षित रखा, लेकिन इस कमाई का कोई -फायदा एनडीटीवी के शेयरधारकों को नहीं दिया गया।
हमने एनडीटीवी के बारे में जो कुछ लिखा है वह मजह एक अंग्रेजी आर्टीकल का अनुवाद है। इस स्टोरी के लिए आप इस लिंक पर भी जा सकते हैं- http://www.sunday-guardian.com/a/1088
नोट-प्रणव राय और एनडीटीवी के एक दूसरे बड़े घोटाले को हम अगले हफ्ते प्रकाशित करेंगे।

Sunday, December 5, 2010

सीबीआई की वेबसाइट बाबा आदम के ज़माने की है!



५ दिसंबर २०१०

'पाकिस्तानी साइबर आर्मी' नामक एक संगठन ने शुक्रवार रात केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की वेबसाइट को हैक कर दिया। यही नहीं, पाकिस्तान के इंटरनेट हैकरों ने इस 'साइबर हमले' में नेशनल इंफार्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) की वेबसाइट सहित 200 से अधिक वेबसाइट्स हैक करने का दावा किया है। बहरहाल, सीबीआई ने 'पाकिस्तानी साइबर आर्मी' के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।

सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया, "हमने देखा कि तीन से चार दिसम्बर की रात सीबीआई की आधिकारिक वेबसाइट के साथ अनधिकृत रूप से छेड़छाड़ की गई है। हमने कानून के तर्कसंगत प्रावधानों के तहत सीबीआई के साइबर अपराध शाखा में एक मामला दर्ज कराया है।" जांच एजेंसी की वेबसाइट शनिवार को भी प्रभावित रही।

जांच एजेंसी के अनुसार शुक्रवार रात वेबसाइट पर 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का संदेश पोस्ट किया गया, लेकिन एजेंसी का कहना है कि उसे यह नहीं पता है कि इस साइबर हमले के पीछे किसका हाथ है। अधिकारी के मुताबिक लोगों के उपयोग के लिए वेबसाइट को शीघ्र उपलब्ध करा दिया जाएगा। उन्होंने कहा, " एनआईसी और सीबीआई के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ वेबसाइट सक्रिय करने के काम में लगे हुए हैं।"

उधर, इस्लामाबाद में स्थानीय समाचार पत्र 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' के मुताबिक 'प्रीडेटर्स पीके' नामक संगठन का कहना है कि 26 नवंबर को 'भारतीय साइबर आर्मी' (आईसीए) द्वारा पाकिस्तानी वेबसाइट्स पर किए गए साइबर हमले का बदला लेने के लिए ऐसा किया गया है। पत्र के मुताबिक आईसीए ने 26 नवंबर को 36 पाकिस्तानी वेबसाइटों को हैक किया था। इनमें पाकिस्तानी नौसेना, राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी), विदेश मंत्रालय, शिक्षा और वित्त मंत्रालय की वेबसाइट्स शामिल थीं। इनके अलावा इस्लामिक संगठनों की कई वेबसाइट्स को भी हैक किया था। आईसीए ने वेबसाइट हैक किए जाने के दौरान लिखा था, "यह 26/11 हमले (मुम्बई आतंकी हमले) का बदला है।"

वेबसाइट पर जारी संदेश में लिखा गया है, "इंडियन साइबर आर्मी द्वारा पाकिस्तानी वेबसाइट को हैक करने के जवाब के तौर पर इस वेबसाइट को हैक किया गया है। हमने आप से पहले भी कहा था..हम सो रहे हैं लेकिन मरे नहीं हैं।" समूह ने दावा किया है कि उसने सीबीआई की वेबसाइट को उपलब्ध कराने वाली 'नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर' (एनआईसी) के सर्वर को भी हैक किया है। एक हैकर ने वेबसाइट पर भेजे गए संदेश में लिखा है, "यह भारतीय हैकरों के लिए केवल एक चेतावनी है।

पाकिस्तानी वेबसाट्स को निशाना बनाना बंद करें। हमें कुछ साबित करने के लिए मजबूर न करें। आपकी सुरक्षा अच्छी है लेकिन हम इसे भेद रहे हैं।" समूह ने कहा है, "हम भारत के साथ साइबर युद्ध के लिए तैयार हैं, जिसे भारत ने पाकिस्तान के विरूद्ध शुरू किया है। यह हमारी सरकार की कमजोरी है, जिसने अपनी सरकारी वेबसाइट्स को सस्ते सर्वर से जोड़ रखा है। पूरे पाकिस्तान को पाकिस्तानी हैकरों की क्षमता को समझना चाहिए।"

"अब पाकिस्तान की सरकार को अपनी साइट्स की और अधिक सुरक्षा करनी चाहिए। हमने उन्हें उसी दिन बता दिया था जब यह समस्या सामने आई थी। पाकिस्तानी नागरिकों को चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि पाकिस्तानी हैकर अभी जीवित हैं।" सा.....

Friday, December 3, 2010

बरखा दत्त किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पायीं!

आलोक तोमर
वरिष्ठ पत्रकार
3 दिसंबर 2010
नई दिल्ली।

टेलीविजन मीडिया की सुपर स्टार बरखा दत्त को बचाने के लिए उनके चैनल एनडीटीवी ने भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार अपने ही किसी पत्रकार का अपने ही पर्दे पर कोर्ट मार्शल करवाया और सच यह है कि इस कोशिश से बरखा दत्त को और अधिक अपमान का सामना करना पड़ा। बरखा दत्त किसी भी सवाल का सही जवाब नहीं दे पाई और आखिरकार उन्होने सवाल करने वालों से ही सवाल करने शुरू कर दिए। चैनल उनका था, कार्यक्रम संचालित कर रही देवी जी उनके अधीन काम करती हैं और संपादकों का जो पैनल बरखा से पूछताछ करने बैठा था उसमें वे मनु जोसेफ भी थे जिन्होंने ओपेन मैग्जीन के जरिए नीरा राडिया और बरखा के टेप उजागर किए हैं।
 
 बरखा ने पूछा कि आउटलुक ने जो 104 टेप छापे हैं उनमें तो 40 पत्रकारों के नाम है, सिर्फ मुझे ही क्यों घसीटा गया है? बरखा ने तो वीर सांघवी का नाम लिए बगैर उनके बच जाने पर सवाल किया। सबसे पहले राडिया बहन जी के बरखा बहन जी के साथ टेप छापने वाले मनु जोसेफ भाई साहब के सवालों के सामने बरखा ध्वस्त हो गई और उनसे उनकी पत्रकारिता की नैतिकता पर सवाल करने लगी।
 
रही बात बाकी संपादकों की तो दिलीप पंडगावकर से ले कर स्वपन दासगुप्ता तक कोई यह मानने को राजी नहीं था कि बरखा ने नीरा राडिया के साथ मिल कर खेल नहीं खेला है। बरखा को कहना पड़ा कि वे तो खबर पाने के लिए नीरा राडिया को बेवकूफ बना रही थी। उनको यह भी मंजूर करना पड़ा कि नीरा राडिया ने ही उनकी रतन टाटा से कई मुलाकाते करवाई थीं।
 
मनु जोसेफ ने पूछा कि आखिर नीरा राडिया सरकार बनाने में दो पार्टियों के बीच मैनेजर बनी हुई थी और क्या यही असली खबर नहीं थी? पहले तो बरखा दत्त ने माना कि उनसे फैसला करने में गलती हुई मगर मुझे वास्तव में पता नहीं था कि नीरा राडिया कौन है? मेरे पास तो हजारों फोन आते हैं, यह बरखा ने कहा। लेकिन यह मनु जोसेफ के सवाल का जवाब नहीं है।
बरखा ने जानबूझ कर एक घंटे के शो का समय बर्बाद किया। उन्होंने अपने टेप दिखाना जारी रखा, अपनी अपनी रिपोर्टिंग के बुलेटिन फिर दिखाए और यह साबित करने की पूरी कोशिश की कि देश में उनसे बड़ा प्रतिभाशाली और शानदार पत्रकार कोई नहीं है। बरखा दत्त जो शुरू में थोड़ी आत्मरक्षा की बाते कर रही थी आखिरकार इसी बात पर आ कर अटक गई कि यह अगर पत्रकारिता पर नैतिकता की बहस है तो ओपेन मैग्जीन के मनु जोसेफ से भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर उन्होंने उनके होर्डिंग क्यों लगाए और उनके निजी एसएमएस को सार्वजनिक क्यों किया?
मनु जोसेफ लाख करते रहे कि आप मेरी निजी दोस्त नहीं हैं और वे एसएमएस आपका पक्ष जानने के लिए एक संपादक के तौर पर भेजे थे लेकिन बरखा दत्त जो टीवी अच्छी तरह जानती है, वक्त गुजारने के लिए उनसे बहस करती रही और कार्यक्रम का ही वक्त खत्म हो गया। मौजूद संपादकों में बिजिनेस स्टैंडर्ड के संपादक और प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार रहे संजय बारू भी थे और उनके एक सीधे सवाल का जवाब बरखा नहीं दे पाई। बारू ने पूछा था कि क्या आप सिर्फ हमें यह बता दें कि आपको इस्तेमाल किया गया या आप जानबूझ कर इस्तेमाल होने के लिए तैयार थीं?