Monday, January 3, 2011

फिर कालिख पुती भारतीय सेना की मुंह पर!


थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
3 दिसंबर 2011
भारतीय सेना पर कलंक लगने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी भूमि घोटाला, कभी आदर्श घोटाला, कभी सेक्स स्कैंडल, तो कभी दाल-भात घोटाला आये दिन मीडिया की सुर्खियों में छाये रहता है। अब बारी है आईईडी में काली रेतभरकर बरामद करने की, जिससे सेना के जवानों को पुरस्कार मिलने का सिलसिला जारी रहे, और पुरस्कार के स्वरूप मोटी रकम मिलते रही। आइए देखते हैं इस नये और बड़े घोटाले की कहानी को। जो इस समय मीडिया की 'हेडलाइलों' में शुमार है।
 
 जीं हां ख़बर जम्मू कश्मीर से आयी है। यहां पता चला है कि सेना में शामिल कुछ लोग और अधिकारी पुरस्कार पाने के लिए धमाका करने वाले उपकरणों का सहारा लेते थे। वो भी नकली धमाका करने वाले उपकरण। जी हां आईईडी में काली रेत भरकर आरडीएक्स के साथ बरामदगी में इन आईईडी को दिखाया जाता था। इस काम में सेना के मझले दर्जे के अधिकारियों का हाथ फिलहाल बताया जा रहा है। इसमें कहा जा रहा है कि सेना के उत्तरी और पश्चिमी कमान के मझले दर्जे के अधिकारियों का मिली भगत के बदौलत इस खेल को अंजाम दिया जा रहा था। फिलहाल अधिकारियों और इस खेल के रचनाकारों के बीच की सांठ-गांठ का खुलासा हो चुका है। इस पूरे खेल में सेना के गुप्तचर शाखा यानि मिलिट्री एंटेलीजेंस के लिए काम करने सतनाम सिंह नाम के एक व्यक्ति को भी शामिल बताया जा रहा है।
 
यह पुरानी कहानी पुरस्कार पाने के लिए गढ़ी जाती थी। इस बारे में जम्मू कश्मीर के एक व्यक्ति महबूब डार को हिरासत में लिया गया है। जिसने पूछ-ताछ के दौरान मान लिया है कि उसे नकली आईईडी को सुनियोजित तरीके से लगाने के लिए कहा जाता था, जिसके एवज में उसे 30-50 रूपए तक दिए जाते थे। फरवरी 2009 से अक्टूबर 2010 के बीच उसने कम से कम 50-60 बार इस तरह के कामों को अंजाम दिया है। मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक भारतीय सेना की उत्तरी और पश्चिमी कमान के कुछ अधिकारियों ने सेवा निवृत्ति सैनिकों के साथ मिलकर काली रेत को आईईडी में डालकर इसे प्लांट करते थे। बाद में इसे आरडीएक्स के साथ बरामद करते और पुरस्कार के स्वरूप मिलने वाली भारी भरकम पुरस्कार हथिया ली जाती।
 
वहीं राज्य और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस साजिश को रचने और अमली जामा पहनाने में सैन्य कमांड का कोई न कोई शख्स जरूर शामिल है। डार ने पूछताछ में बताया कि उसे शुरुआत में सेना के साथ काम करने वाले खुफिया कर्मचारी सतनाम सिंह ने रेत, टूटे पत्थर और सीमेंट लाने और डेटोनेटर लाकर उनके बदले में पत्थरों की खदान वालों को पैसे देने का आदेश दिया था। इन सभी को इकट्ठा करके डोडा में एक पुल के पास जिलेटिन की छड़ों के साथ लगा दिया गया। इसके बाद डार ने याद करते हुए बताया कि अगले दिन उसने अखबार में पढ़ा कि सेना ने कुछ बरामद किया है और उसे विस्फोटक के तौर पर पेश किया। अधिकारी के मुताबिक डार ने बताया कि उसे उस दिन के काम के लिए 40,000 रुपये दिए गए। सूत्रों के मुताबिक डार ने बताया कि जब उसे ऐसी फर्जी आईईडी बनाने में महारत हासिल हो गई, तो सेना के कई खुफिया अधिकारियों ने उसे कुछ लोगों को ऐसे फर्जी आईईडी देने को कहा।
आरोपी महबूब डार और पूर्व सैनिक राम प्रसाद से हुई पूछताछ में इनके व मिलिट्री इंटेलिजेंस के कुछ अधिकारियों के बीच गठजोड़ का खुलासा हुआ है। यह फर्जीवाड़ा तब पकड़ में आया जब पुलिस ने 8 अक्टूबर को जम्मू में एमएलए हॉस्टल के पास सेब के बक्से बरामद किए थे। इनमें छेद करके एक काला पदार्थ भरा गया था जिसे विस्फोटक समझा गया। चूंकि इनमें डेटोनेटर भी लगे थे इसलिए हड़कंप मच गया। इनकी फरेंसिक जांच के बाद पता चला कि काला पदार्थ पत्थरों की खदानों से लाई गई रेत है। जांचकर्ताओं के मुताबिक राज्य में एक योजनाबद्ध रैकेट काम कर रहा है जो मिलिट्री इंटेलिजेंस को मिलने वाले सीक्रेट फंड में इस तरह से सेंध लगा रहा है। यह फंड पाकिस्तान से लगने वाले इंटरनैशनल बॉर्डर और लाइन ऑफ कंट्रोल से जानकारी जुटाने के लिए है। जांचकर्ताओं के लिए यह खुलासा आंखें खोलने वाला था क्योंकि डार ने फर्जी आईईडी के बारे में जो जानकारी दी, वह आधिकारिक रेकॉर्ड से मेल खाती थी। ऐसे सभी मामलों में यह पता चला कि ऐसे विस्फोटकों को सेना ने आईईडी वाले स्थल पर नष्ट किया गया बताया।
 

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