Monday, August 22, 2011

क्यों खड़ा हो गया सारा 'मीडिया' अन्ना के साथ!



 
आकाश श्रीवास्तव
संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली। २२ अगस्त २०११।
कोढ़ और कैंसर से भी खतरनाक 'भ्रष्टाचार' से अभूतपूर्व लड़ाई पूरा देश लड़ रहा है। अन्ना ने जो लड़ाई शुरू की है वह ऐतिहासिक है अभूतपूर्व हैं। इस लड़ाई को अंजाम तक पुहंचाने के लिए मीडिया ने जो अभूतपूर्व व्यवस्था की है उससे सरकार की भौहें भी चढ़ गयी हैं। हकीकत भी है कि इस लड़ाई को देश का समूचा मीडिया इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिनरात काम कर रहा है। टीवी चैनल हों या अखबार हो या फिर वेबमीडिया यानि इंटरनेट हो अन्ना के साथ कदम से कदम मिलाकर इस लड़ाई को युद्ध स्तर पर पूरी दुनिया में पहुंचा रहा है। दिन रात पत्रकार, फोटो पत्रकार, तकनीशियन एवं मीडिया से जुड़े अन्य लोग कंधों से कंधा मिलाकर खाने-पीने की परवाह किए बिना भ्रष्टाचार की खिलाफ इस लड़ाई को अपने-अपने तरीकों से लड़ रहे हैं। सच कहें तो भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को दो धुरियां मिलकर लड़ी रही हैं एक आम भारतीय यानि 'अन्ना' और दूसरा भारतीय 'मीडिया'। जिसने पूरे आंदोलन को आज परवाज़ दे दिया है। हालत यह है कि कैमरों की नज़र से कुछ भी छूट पाना असंभव हो गया है।
 
 इस पूरी लड़ाई को अन्ना के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। जिसमें भारत की पूरी आम जनता दिन रात खड़ी है। लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के काम में भारतीय मीडिया का अभूतपूर्व योगदान है। एक-एक टीवी-टीवी चैनलों की 10-10 टीमें दिन रात काम करते हुए अन्ना के आंदोलन को धार देने में जुटी हुई हैं। आखिरकार टीवी पत्रकारिता का मतलब ही है, निरंतरता, उत्तेजना, संयमता, जोश, गंभीरता, प्रतिस्पर्धा, ताज़गी और पूरी उत्तरदायित्व को राष्ट्र और जनहित में हर ख़बर को धार देना है। जिसे सैकड़ों लोगो की टीम दिन-रात मिलकर काम करती हैं। इसमें टीवी पत्रकार, टीवी छायाकार, तकनीशियन, वीडियो एडीटर के अलावां भी कई और पहलू होते हैं जो टीवी स्क्रीन पर आगे और उसके पीछे युद्ध स्तर पर काम करते हैं। ऐसे वक्त में जब कोई बड़ी ख़बर होती है ऐसे हालात में टीवी काम करने वाला हर कोई व्यक्ति आँखें लाल होते हुए भी (बिना सोए) 'राउंड दी क्लॉक' काम करना पड़ता है।
 
खबरों की मारा-मारी अख़बारों में भी कम नहीं होती है। महत्वपूर्ण घटनाओं और ख़बरों को मुख्य पेज की हेडलाइन बनाने के लिए माथा पच्ची करनी पड़ती है। ख़बरों की रणनीति, खबरों की प्राथमिकता, किस ख़बर को कैसी धार दी जाए, किस ख़बर की नली काटी जाए जैसी तमाम पत्रकारिता की तकनीकियों और रणनीतियों की तेयारी टीवी पत्रकारिता के साथ अख़बारों में भी करनी होती है। यही कारण है कि किसी विशेष घटना चक्र के बदलते रूप को देखते हुए अख़बारों के हेडलाइल को रोक कर रखना पड़ता है ताकि सुबह लोगों को सबसे ताजी ख़बर की हेडलाइन पढ़ने को मिले। इसके लिए डाक एडीशन और सिटी एडीशन के समय में देररात तक फेरबदल करनी पड़ती है।
 
आज भारतीय समाज भ्रष्ट व्यवस्थाओं और भ्रष्ट नेताओं के जबड़े में फंसा हुआ है जो उस जबड़े से निकलने के लिए छटा-पटा रहा है। यही एक कारण है कि भारतीय टीवी मीडिया हर पल की एक एक गतिविधि और हर ख़बर को जन-जन तक, पल-पल पहुंचा रहा 24 घंटों। अन्ना के आंदोलन से जुड़े हर गतिविधि, उनके सभी पहलुओं, उनके सहयोगियों के बोले हर शब्द और उनके हाव-भाव को भारतीय मीडिया जन-जन तक पहुंचानें में दिनरात जुटा हुआ है। टीवी चैनलों पर तो लगभग 95 प्रतिशत ख़बरें अन्ना और उनकी भ्रष्टाचार से लड़ी जा रही लड़ाई को पूरी प्राथमिकता और सर्वोच्चता के साथ दिखाई दे रही हैं।
आज टीवी मीडिया, प्रिंट मीडिया और वेबमीडिया अगर अन्ना के आंदोलन से न जुटता तो आज जो जनसमर्थन और जनसैलाब उमड़ा दिखाई दे रहा है वह भीड़ इतनी आसानी से इस महाअनशन में दिखाई दे देती इसमें संदेह होता। आज भ्रष्टाचार से भारत की 99 प्रतिशत जनता त्रस्त है। मीडिया कर्मी तो इससे बाहर नहीं हो सकते हैं। यही कारण है कि टीवी चैनलों ने अपने वरिष्ठ संपादकों को वातानुकूलित केबिनों से निकालकर रामलीला मैदान में तैनात कर रखा है। जिससे ख़बर की परिपक्वता को बनाई रखी जा सके। हां रही बात टीआरपी और सर्कुलेशन की तो वह अलग मुद्दा हो सकता है। व्यवसाय के उस पहलू को इन तरह की घटनाक्रमों और आंदोलनों से नहीं जोड़ा जा सकता।
हां आपसी प्रतिस्पर्धा एक अलग मुद्दा हो सकता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। सरकार से जुड़े हुए लोग अब मीडिया पर ही अंगुली उठाने लगे हैं। कह रहे हैं कि मीडिया सरकार के खिलाफ है और अन्ना एवं रामदेव के साथ है। ऐसे लोगों के बारे में यही कहा जा सकता है ये वे लोग हैं जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और जो 65 सालों से जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। उन्हें अब डर सताने लगा है कि जन लोकपाल बन जाने के बाद वे जनता को लूट नहीं पाएंगे और भ्रष्टाचार नहीं कर पाएंगे। देश के भ्रष्ट नेताओं को अन्ना और ऐसे उमड़ रहे जनसैलाब से सबक लेनी चाहिए। क्योंकि ये लोग ट्रकों में भरकर नहीं लाए जा रहे हैं इस तथ्य को समझ लेना चाहिए देश के इन बेईमान नेताओं को। 
 

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