Monday, December 27, 2010

भारतीय सेना ने अपने 'पापों' की जानकारी देने से मना किया?


आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कही जाने वाली भारतीय सेना कितनी भी मजबूत क्यों न हो लेकिन जब इसके अंदर की छिपी कमियों, नाकामियों और भ्रष्ट्राचार से संबंधित जानकारी मांगी गयी तो सेना के संबंधित सूचना अधिकारी ने जानकारी देने से साफ मना कर दिया। आखिर सेना ने संबंधित जानकारी क्यों नहीं दी? जनहित में भारतीय सेना से पूछी गयी ये जानकारियां सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत थी। जिसकी हम आगे बिस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।
 
 कहने को तो भारतीय संविधान में सूचना का अधिकार का प्रावधान है। अभी कुछ समय पहले भारत आए अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने भारत की तमाम प्रशंसाओं में एक प्रशंसा यह भी की थी कि, यहां पर सूचना का अधिकार लेने का एक शानदार कानून है। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस कानून का यानि सूचना का कानून का भी वही ह्रश्य भारत में है जो अन्य कानूनों का है। कानून तो बन गया लेकिन उसमें पेचीदियां इतनी हैं कि कोई भी सूचना जल्दी सीधे तौर से पूरी की पूरी नहीं मिल पाती हैं। बहुत कम ही ऐसे मामले होंगे जिसमें सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गयी सूचना ईमानदारी से पूरी तरह दी गयी हो।
 
सूचना देने वाला अधिकारी इतना घाघ होता है कि सबकुछ देते हुए भी मांगने वाले को कुछ सूचना नहीं देता है। कई तो ऐसे सूचना अधिकारी हैं जो सीधे-सीधे अनर्गल कारण बताकर सूचना देने से एक तरह से साफ इंकार कर देते हैं। ऐसा ही कुछ हाल है भारतीय सेना के संदर्भ में। पिछले दिनों इस दुर्लभ कानून के सहारे भारतीय सेना से कुछ सूचनाएं मांगी गयी थीं। जिसे किसी भी लिहाज से नहीं कहा जा सकता कि उसमें कुछ ऐसी जानकारी थी जो देशहित को चोट पहुंचाता हो। या फिर भारतीय सेना की गोपनीयता को लीक करती हो। कहने का मतलब गोपनीयता को भंग करने वाली सूचना नहीं थी जिसे सेना न दे सकी हो।
 
भारतीय सेना से पूछा गया था कि पिछले तीन सालों में भ्रष्टाचार के कुल कितने मामले दर्ज किए गए। सेना के कुल कितने अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए। उन अधिकारियों के नाम रैंक के साथ बताएं। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ किस तरह से कार्रवाई हुई है। कुल कितने अधिकारियों का कोर्ट मार्शल हुआ है। पिछले पांच सालों में सेना के अधिकारियों के खिलाफ यौन शोषण के कुल कितने मामले दर्ज हुए हैं। दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। इस प्रश्न के जवाब में कहा गया कि आपको इसकी जानकारी नहीं दी सकती है।
भारतीय सेना के सिपाहियों का अधिकारियों के घरों में नौकरों की तरह ली जाने वाली सेवाओं के बारे में जानकारी मांगी गयी थी, कि क्या सेनाधिकारियों के घरों में घरेलू कामों के लिए सेना के जवानों का नौकर के रूप में काम करने का प्रावधान है? अगर किसी अधिकारी के घर में घरेलू नौकर के रूप में कोई सिपाही काम करता पाया जाता है तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई प्रावधान है? इसके जवाब में कर्नल एके. व्यास, जनसूचना अधिकारी, सेना भवन नई दिल्ली ने जवाब दिया कि इसकी जानकारी जन सूचना अधिकार के तहत नहीं दी सकती है। यह तो कुछ प्रश्नों का जवाब था जिसे देने से साफ मना कर दिया गया। इसमें कौन सी ऐसी जानकारी थी जिसे गोपनीयता और राष्ट्रहित के खिलाफ समझी जाए।
जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत ऐसी एक और जानकारी मांगी गयी थी, जिसमें पूछा गया था कि पिछले 10 सालों में किस सेनाध्यक्ष के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के सबसे ज्यादा मामले हुए हैं। सभी सेना अध्यक्षों का नाम पूछा गया साथ में अलग-अलग सालों की जानकारी विस्तार पूर्वक मांगी गयी थी। इसका जवाब दिया गया कि संबंधित जानकारी नहीं दी सकती है। सवाल उठता है आखिर ये जानकारियां क्यों नहीं दी सकती हैं? क्या लोगों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि सेना का सबसे भ्रष्ट सेना अध्यक्ष अभी तक कौन रहा है? भ्रष्टाचार के मामलों में सेना अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। अगर सेना इन सूचनाओं को देने से मना करती है तो यही समझा जाएगा कि सेना ने संबधित जानकारी न देकर अपने गुनाहों और पापों को एक तरह से छुपाने की कोशिश की है।

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