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विपुल कुमार के साथ |
आकाश श्रीवास्तव, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ |
नई दिल्ली, १५ दिसंबर २०१०। |
देश के दो प्रमुख कार्पोरेट कंपनियों ने देश को जो चूना लगाया है उसे सरकार ने क्यों दरकिनार किया, यह समझ से परे है। लेकिन जनहित में क्या सरकार आईसीआईसीआई बैंक और एनडीटीवी के गुनाहों को जांच के जरिए उजागर करके देश की जनता को जवाब देना चाहेगी? असल में इन दोनों कंपनियों ने मिलकर देश के साथ जो घोटाला किया है वह चौंकाने वाला है। आइए जानते हैं क्या है यह झंकझोर देने वाला घोटाला। |
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 | | एनडीटीवी लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनियों ने, आईसीआईसीआई के साथ मिलकार सोची-समझी रणनीति के तहत भारी-भरकम वित्तीय घोटाले को अंजाम दिया। एनडीटीवी और आईसीआईसीआई की इस मिलीभगत से, एनडीटीवी ने भरपूर कमाई की और अपने शेयरों के वैल्यूएशन को मनमाने तरीके से बढ़ाया।
एनडीटीवी ने अपने इन शेयरों की मिल्कियत, बाद में आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम कर दी। एनडीटीवी और आईसीआईसीआई ने, साल दो हज़ार आठ में जुलाई और अक्टूबर महीने के बीच एक डील पर साइन किया। इस दौरान एनडीटीवी ने भारी संख्या में स्टॉक मार्केट से शेयरों के खरीदने की पहल की। इस खरीद में हर शेयर की कीमत चार सौ उन्चास रुपये प्रति शेयर थी। |
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उन दिनों हर स्टॉक मार्केट में शेयरों की कीमत आसमान पर थी और ये उम्मीद जताई जा रही थी कि एनडीटीवी के शेयरों में और भी उछाल देखा जा सकता है। यही वजह रही कि एनडीटीवी, अपने ही शेयरों को फिर से खरीदना चाहा। लेकिन चूंकि एनडीटीवी के पास लिक्विडिटी कम थी इसलिए उसने इंडिया बुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज़ कंपनी से तीन सौ तिरेसठ करोड़ रुपये उधार लिया। उधारक से मिली भारी रकम के बाद एनडीटीवी के शेयरों की संख्या बढ़कर नब्बे लाख सत्तर हज़ार दो सौ संतानवे हो गई। इस सारे खेल को एनडीटीवी ने बड़ी ही योजनाबद्ध तरीके से जुलाई दो हजार आठ में अंजाम दिया। |
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अगस्त दो हज़ार आठ में, सब-प्राइम क्राइसिस की वजह से दुनिया के सारे स्टॉक मार्केट में उठा-पटक का दौर शुरू हो गया और कई शेयर मार्केट धराशायी हो गए। देश का मुख्य सूचकांक सेंसेक्स बाइस हज़ार से लुढ़ककर दस हज़ार पर आ गया। ऐसी बदहाली में एनडीटीवी के शेयरों की वैल्यूएशन भी तीन सौ चौरानवे रुपये प्रति शेयर से घटकर सौ रुपये प्रति शेयर पर आ गई।
साथ ही, इंडिया बुल्स से मिले लोन की वैल्यूएशन भी बुरी तरह से गिर गई। उसके बाद, इंडिया बुल्स ने एनडीटीवी पर लोन वापस करने के लिए लगातार दबाव बनाने लगा। लेकिन एननडीटीवी के पास इंडिया बुल्स को वापस करने के लिए पैसे नहीं थे। तो पैसे के लिए एनडीटीवी ने एक बार फिर से आईसीआईसीआई का रूख किया। आईसीआईसीआई ने एनडीटीवी को अक्टूबर दो हज़ार आठ में तीन सौ पचहत्तर करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया। आईसीआईसीआई ने ये कर्ज़, आरआरपीआर के पास रखे एनडीटीवी के शेयरों को गिरवी के एवज में दिया। आरआरपीआर के इन शेयरों की संख्या थी, सैंतालीस लाख इकतालीस हज़ार सात सौ इक्कीस शेयर जिसके बदले में एनडीटीवी को ये कर्ज़ मिला। इनमें हर शेयर की औसतन कीमत चार सौ उन्तालीस रुपये प्रति शेयर थी जिसकी कुल वैल्यूएशन दो सौ आठ करोड़ रुपये आंकी गई।
एनडीटीवी के वित्तीय घोटाले का ये पहला सफल नमूना था। एनडीटीवी ने अपने हथकंडो से ये साबित कर दिया कि कम पैसे में किस तरह भरपूर मुनाफा कमाया जा सकता है...किस तरह से स्टाक मार्केट में शेयरों की वैल्यूएशन की बढ़ाई जा सकती है....और अपने फायदे के लिए किस तरह कानून के प्रावधानों को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। कोलेटरल के रुप में जिन शेयरों की कीमत चार सौ उनतालीस रुपये आंकी गई थी, तेईस अक्टूबर दो हज़ार आठ तक, बाज़ार में उसकी असली कीमत मात्र निन्यानवे रुपये थी। कोलेटरल की कुल वैल्यू सिर्फ चियालीस दशमलव नौ चार करोड़ रुपये थी जो एनडीटीवी के पूरे कर्ज़ का सिर्फ आंठवा हिस्सा थ। आईसीआईसीआई जो उस समय पब्लिकट्रेडिंग कंपनी थी ने प्रणव राय और राधिका राय की तरफ से घोटाले को लेकर कई झूठे कमिटमेंट्स किए।
प्रणव राय और राधिका राय उस समय आरआरपीआर कंपनी के दो ही शेयर होल्डर थे। मज़े की बात ये है कि आरआरपीआर के पास उस वक्त, एनडीटीवी का एक भी शेयर नहीं था और उस कंपनी की मिल्कियत मात्र एक लाख रुपये की थी।
हिला देने वाली बात ये भी थी कि आरआरपीआर के डायरेक्टर प्रणव राय औऱ राधिका राय को तिहत्तर दशमलव नौ एक करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज भी मुहैया हो गया। ये कर्ज़ उस रकम से दी गई जिसे एनडीटीवी ने आईसीआईसीआई से लोन लेने के बाद हासिल किया था। आईसीआईसीआई से इस तरह का कर्ज़ लेना साफ तौर पर SARFAESI Act of 2002 का उल्लघंन था।
मज़े की बात ये है कि कॉरपोरेट मंत्रालय को, एनडीटीवी के इस पूरे घपले और तमाम ट्रान्जैक्शन्स की जानकारी थी लेकिन कॉरपोरेट मंत्रालय, इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे रहा। साथ ही, देश के रिजर्व बैंक ने भी इस मामले पर पूरी चुप्पी बनाए रखना ठीक समझा।
इस मामले से जुड़े तहकीकात में जुटी, सीबीआई ने सिर्फ एक महीने पहले, एलआईसी के बड़े अधिकारियों, को दो हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज़ घोटाले में गिरफ्तार किया है। जहां तक एनडीटीवी का सवाल हैं तो वो विदेशों से भारी मात्रा में कर्ज़ के रूप में रुपये उठाता है और अपनी सहयोगी कंपनियों को विदेशों में ही पैसों के बराबर कंपनियों के शेयर बेच देता है। एनडीटीवी इन शेयरों को ऐसे रेट पर बेचता है जिसका असली कीमत बाज़ार में कुछ और ही होती है।
जैसे- एनडीटीवी के शेयर को सात सौ छियहत्तर रुपये प्रति शेयर की दर से बेचा गया जबकि उन शेयरों की मार्केट वैल्यू मात्र दस रुपये प्रति शेयर थी। लेकिन शेयरों की बिक्री से होने वाले मुनाफे का फायदा किसी भी तरह भारतीय निवेशकों को नहीं दिया गया। बाद में, एनडीटीवी के शेयरों में लगातार गिरावट होती चली गई और उसे लागातार घाटा होता चला गया। एनडीटीवी के बिज़नेस का ज्यादातर फायदा उसकी विदेशी सहयोगी कंपनियों के कारोबार पर निर्भर करता है जिसमें उसकी लंदन स्थित कंपनी प्रमुख है।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सिर से पैर तक घोटाले में डूबी एनडीटीवी कंपनी किस तरह अपनी साख बचा पाती है और घोटालों से किस तरह अपनी कंपनी को उबार पाती है। असल में हमने जो कुछ लिखा है वह महज एक अंग्रेजी संस्करण का अनुवाद है। जिसका मुख्य उद्देश्य है इस घोटाले को अपने थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ के पाठकों तक पहुंचाना हैं। आप चाहें तो नीचे दिए गये लिंक को अपने इंटरनेट ब्राउसर पर कॉपी करके अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं।
http://www.sunday-guardian.com/a/1082 |
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