Friday, December 24, 2010

प्रभु चावला का पर कतरने में पीएमओ का हाथ?


आकाश श्रीवास्तव
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़।
नई दिल्ली, २५ दिसंबर २०१०
जब से दूर संचार घोटाला का पर्दाफाश होना शुरू हुआ, तब से एक के बाद एक हस्तियों का नाम किसी न किसी रूप में सामने आने लगा है। जिसमें रतन टाटा, सुनील भारती मित्तल, राजा तो राजा हैं ही, वीर सांघवी, बरखा दत्त, प्रभु चावला और न जाने कितने नाम आने वाले वक्त में अभी और उजागिर होंगे। ये सारे नाम कहीं न कहीं दलाली करने या फिर उससे जुड़े होने के रूप में आये हैं। कहते तो यहां तक है कि एक वरिष्ठ महिला पत्रकार और एक वरिष्ठ पुरूष पत्रकार जिनका अंग्रेजी पत्रकारिता में महारत हासिल है उन्होंने 100 करोड़ रूपए इस दलाली में खाएं हैं। यही नहीं नेपाल में काठमांडू के पास एक रिसोर्ट भी इन धुरंधरों ने मिलकर खरीदा है। फिलहाल हमारे पास इसे साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है। लेकिन कहीं न कहीं इसमें सच्चाई जरूर होगी। कहते हैं न कि वगैर आग के धुंआ नहीं दिखाई देता है।
फिलहाल राजा साहब को खंगालने में सीबीआई जुट गयी है। सीबीआई के सामने हाजिर वे हाजिर हो चुके हैं। इसके अलावा उनके पास कोई चारा भी तो नहीं बचा था। अब जो एक और बड़ा नाम इसमें शामिल होता दिखाई दे रहा है। वह है प्रभु चावला का। प्रभु चावला तो सीधी बात के लिए जाने ही जाते हैं। thirdeyeworldnews.co.inशायद यही कारण है कि सीधी बात ही उन्हें सीधा रास्ता दिखा दिया है। प्रभु चावला देश के गिने-चुने दिग्गज पत्रकारों की पंक्ति में आते हैं। इंडिया टूडे समूह ही उनके नाम से जाना जाता था। एक समय था कि इंडिया टुडे और प्रभु चावला एक दूसरे के पर्यायवाची थे। इसे कहने में हिचक नहीं होनी चाहिए, प्रभु चावला ने जितना टीवी टुडे ग्रुप जो आजतक और इंडिया टुडे के नाम से विशेषतौर पर जाना जाता है, से जितना कमाया नहीं है उससे ज्यादा इस समूह को लाभ पहुंचाया है।
दूर संचार घोटाले में कहीं न कहीं नाम प्रभु चावला का भी जुड़ गया है। उनका नाम किस रूप में जुड़ा वह आने वाले समय में पता चल पाएगा। "थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़" के सूत्रों पर अगर भरोशा करें तो प्रभु चावला को जिन महत्वपूर्ण पदों से टीवी टुडे समूह ने हटाया है उसमें सीधे तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय का दखल था। सूत्र कहते हैं कि पीएमओ यानि प्रधानमंत्री कार्यालय ने टीवी टूडे समूह के मालिकों को कह दिया था कि प्रभु चावला को हटा दिया जाय। इसमें कितनी सच्चाई है यह इसी बात से पता चलता है कि इस समूह को आधार देने वाले प्रभु चावला के अधिकारों में कटौती तो की ही गयी उनके पद को भी छोटा कर दिया गया।उनकी जगह पर एम जे अकबर को लाया गया है। जो इस समय इस समूह के एक तरह से सर्वेसर्वा जैसे हैसियत रखते हैं। कहा जाता है कि एम. जे अकबर कांग्रेसी हैं और प्रभु चावला के बारे में कहा जाता है कि कहीं न कहीं उनका विचार आर.एस.एस के विचारधारा से मेल खाता है।
अगर इसमें जरा भी सच्चाई है तो प्रभु चावला के पर कतरने में भी कहीं न कहीं एक बहुत बड़ी राजनीतिक दांव-पेच का खेल रहा है। कुछ भी हो दूरसंचार के इस घोटाले ने संचार की दुनिया में रहकर संचालन करने वालों के मुखौटों को उतार फेंका है। अगर सीबीआई की जांच में कोई दखल नहीं आया और सीबीआई ईमानदारी से काम करती रही तो कई लोगों के जिंदगी भर प्रतिष्ठा की की गयी खोखली कमाई का पर्दाफाश होने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि इस पूरे मामले पर सीधे भारत की शीर्ष न्यायालय की नज़र है।

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