Saturday, January 15, 2011

चार पुस्तकों का लेखक रिक्शा चलाता है

कोई रिक्शा चालक कविताएं लिखता हो तो सुनने में दिलचस्प लग सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक रिक्शाचालक की लिखी चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर आधारित करीब चार सौ कविताओं का संग्रह है। बस्ती जिले के बड़ेबन गांव निवासी रहमान अली रहमान (55) की राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सौहार्द्र, पानी और महंगाई जैसे विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर कविताओं की चार किताबें प्रकाशति हो चुकी हैं।

रहमान ने आईएएनएस से बताया, "कविता लेखन मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। बिना कविताओं के मैं अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता। कविता मुझे जीवन की कठिनाइयों का सामना करना की शक्ति देती है।" रहमान के मुताबिक जब उन्हें सवारी नहीं मिलती तो वह अपने समय का उपयोग कविता लिखकर करते हैं। परिवार की आर्थिक हालत ठीक न होने के चलते रहमान ने 10वीं के दौरान स्कूल छोड़ जीविका चलाने के लिए काम करना पड़ा, लेकिन वह लेखक बनना चाहते थे। वह कहते हैं, "पिता के निधन के बाद मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। उस समय लेखन के क्षेत्र में जाकर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए न तो मेरे पास समय था और न ही संसाधान।"

कुछ समय बाद रहमान कानपुर जाकर एक सिनेमाघर में नौकरी करने लगे। रहमान याद करते हुए कहते हैं कि नौकरी के दौरान उन्हें फिल्मी गाने सुनने का मौका मिलता। बाद में वह खुद गीत लिखने का प्रयास करते। अपने गीतों से रहमान कुछ दिनों में सिनेमाघर के कर्मचारियों के बीच खासे लोकप्रिय हो गए। रहमान जो अभी तक केवल गाने लिखते थे धीरे-धीरे समसामयिक मुद्दों पर लंबी कविताएं लिखने लगे। इसी बीच उन्हें बस्ती जिले स्थित अपने गांव जाना पड़ा, जहां उनकी शादी हो गई। यहां उन्होंने अपनी जीविका चलाने के लिए रिक्शा चलाने का फैसला किया। इस दौरान उन्होंने रिक्शा चलाते हुए कविताएं लिखना जारी रखा। रहमान के तीन पुत्र और तीन पुत्रियां हैं।

वर्ष 2005 रहमान के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया जब एक व्यक्ति की मदद से रहमान की पहली पुस्तक का प्रकाशन हुआ। इसके पीछे दिलचस्प कहानी है। रहमान ने बताया, "आवास विकास कॉलोनी (बस्ती) के पास एक दिन मैं सवारी का इंतजार कर रहा था तभी एक व्यक्ति ने मुझसे कहीं छोड़ने के लिए कहा। उसने देखा मैं कागज पर कुछ लिख रहा हूं। रास्ते में बातचीत के दौरान उसे मेरे कविता लेखन के बारे में पता चला। उसने मुझे स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कानपुर जेल के एक कार्यक्रम में कविताएं सुनाने का मौका दिया।"

रहमान ने उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और इस दौरान उन्हें पता चला कि वह व्यक्ति मशहूर हास्य कवि राम कृष्ण लाल जगमग हैं। बाद में रहमान का सामाजिक दायरा बढ़ा। एक कार्यक्रम में रहमान की मुलाकात कुछ शक्षिकों से हुई। वे कानपुर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) मानस संगम के सदस्य थे। इन लोगों की मदद से वर्ष 2005 में रहमान की पहली पुस्तक 'मेरी कविताए' का प्रकाशन हुआ। तब से रहमान की 'रहमान राम को', 'मत करो व्यर्थ पानी को' सहित तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

एनजीओ मानस संगम से संयोजक बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि रहमान हर मायने में अद्भुत हैं। विपरीत परिस्थितियों में कविता लेखन के निरंतर प्रयास का उसका जज्बा निश्चति तौर पर काबिले तारीफ है। सौजन्य: अरविंद मिश्रा, आईएनएस। नोट - फोटो फाइल यूज के लिए है।

Saturday, January 8, 2011

दूरसंचार मंत्रालय को दूरसंचार घोटाले की जानकारी नहीं!


आकाश श्रीवास्तव
थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली।
दूरसंचार मंत्रालय जो घोटाले का 2010 का प्रमुख अड्डा बना रहा कहता है कि उसे घोटाले की कोई जानकारी नहीं है। जी हां यह लिखित जवाब दिया है दूरसंचार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने। जिस दूरसंचार घोटाले ने बड़े-बड़ों को नंगा कर दिया, जिसकी वजह से ए .राजा की कुर्सी चली गयी उसी विभाग और मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है कि उसके पास घोटाले से जुड़ी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है? दूर संचार के एक वरिष्ठ अधिकारी ए. के मित्तल, उप महानिदेशक (ए.एस) ने 'थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़' को दिए लिखित जवाब में कहा है कि दूरसंचार स्पेक्ट्रम घोटाले, घोटाले की कुल राशि आदि के बारे में मांगी गयी सूचना का जवाब देने के लिए उसके पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
जिस दूरसंचार घोटाले को लेकर संसद की पूरी शीतकालीन सत्र हंगामे की भेट चढ़ गयी और करोड़ों रूपयों का नुकसान हुआ। जिस घोटाले को लेकर पूरा विपक्ष एक जुट हो गया, जिस घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद संसद की लोक लेखा समिति के सामने पेश होने की बात कह डाली उस घोटाले पर दूरसंचार मंत्रालय का एक वरिष्ठ अधिकारी कहता है कि उसके पास घोटाले से संबंधित जानकारी देने के लिए कोई जवाब नहीं है इससे बड़ा बेहूदापन जवाब और क्या हो सकता है। हमने यह जानकारी आरटीआई कानून के तहत मांगी थी। जिसपर मंत्रालय का इस तरह का जवाब मिला है।
दूरसंचार मंत्रालय जो सन् 2010 का घोटाले का मुख्यकेंद्र बिंदु था के जिम्मेदार सूचना अधिकारियों का यह जवाब कई सवाल खड़े कर देते हैं। पौने दो लाख करोड़ के इस घोटाले की जानकारी मंत्रालय के उन सूचना अधिकारियों के पास क्यों नहीं है जिनकी नियुक्त ही सूचना देने के लिए हुई है और वह जिसके लिए कानून रूप से अधिकृत हैं। क्यो संबंधित मंत्रालय ने संबंधित अधिकारियों को इस तरह की मांगी गयी जानकारी देने से रोक रखा है? हमें ए.के. मित्तल साहब ने जवाब तो नहीं दिया लेकिन सलाह जरूर दे डाली कि आप यह जानकारी वित्त मंत्रालय और सीबीआई से प्राप्त करें जो जांच कर रही है।
देश के इतने बड़े घोटाले की जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई का सहारा लेना पड़ा लेकिन उसका भी समुचित जवाब नहीं दिया गया। जबकि घोटाले से संबंधित जो भी जानकारियां मांगी गयी थी वह बहुत सामान्य थीं। जिसके कुछ अंश दिए जा रहे हैं।
सवाल कुछ इस तरह थे- टेलीकॉम घोटाले (स्पेक्ट्रम) घोटाले में किन लोगों को हाथ है, कुल कितने करोड़ का घोटाला हुआ है। घोटाले की जांच कौन-कौन सी एजेंसियां कर रही हैं। घोटाले की जांच कब शुरू की गयी। नीरा राडिया का नाम किस प्रकार से घोटाले में शामिल हुआ, राडिया के अलावा और किन लोगों के नाम इस घोटाले से जुड़े हुए हैं। क्या इस घोटाले में किसी रूप में किसी मीडिया घराने का नाम भी शामिल है? या कोई मीडिया कर्मी किसी न किसी रूप में इस घोटाले में शामिल हुआ है। ये पूछे गये सवालों के कुछ अंश हैं। जिनके जवाब में कहा गया कि आप ये सवाल वित्त मंत्रालय और सीबीआई से पूछे। यह तो वही बात हुई कि घर में चोरी हुई बात पड़ोसी से पूछने को कह दी जाए।

Monday, January 3, 2011

दर्शक ही नंगा देखना चाहता है तो हीरोईन क्या करे - तनुश्री दत्ता


दर्शक ही नंगा देखना चाहता है तो हीरोईन क्या करे -तनुश्री
थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
३ जनवरी २०११
फिल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने कहा कि दर्शक ही नंगा दिखना चाहते हैं तो इसमें हीरोइनों की क्या दोष है। उनका मानना है कि फिल्मों में कम कपड़ा, रेप के सीन, भडकाऊ दृश्य दर्शकों की मांग पर फिल्मों में डालनी पड़ती है। ऐसा उनका खुद का तर्क है। तनुश्री वर्ष 2004 में "फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स" चुनी गई थीं और उन्होंने वर्ष 2005 में बॉलीवुड में अपने फिल्मी करियर की शुरूआत "आशिक बनाया आपने" से की थी। उनका कहना है, "मैं अपने काम पर ध्यान देना चाहती हूं और ऎसी फिल्में करना चाहती हूं कि लोग उन्हें देखें। लेकिन कभी-कभी बहुत सारी चीजें आपके हाथ में नहीं होती हैं।
बॉलीवुड एक्ट्रेस तनुश्री दत्ता का मानना है कि अभिनेत्रियां फिल्म की पटकथा की वजह से नहीं, बल्कि दर्शकों की मांग के चलते कैमरे के सामने कम कपड़ों में दिखती हंै। तनुश्री का कहना है, "वास्तव में जब लोग आपके पास किसी खास तरह की भूमिका का प्रस्ताव लेकर आते हैं, तो निश्चित तौर पर ऎसा दर्शकों की मांग के कारण ही होता है।" उन्होंने कहा है कि मैंने हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया है। कुछ फिल्में अच्छी बनती हैं, कुछ अच्छी नहीं हो पाती हैं।" उल्लेखनीय है कि तनुश्री पिछले पांच सालों में लगभग 12 हिन्दी और तेलुगू फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उनकी कोई अभी तक ऐसी फिल्म नहीं आयी है जिसे बहुत यादगार के तौर पर कहा जाए।
 http://www.thirdeyeworldnews.co.in/details_links.php?id=1196&name=%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8#1196

फिर कालिख पुती भारतीय सेना की मुंह पर!


थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
3 दिसंबर 2011
भारतीय सेना पर कलंक लगने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी भूमि घोटाला, कभी आदर्श घोटाला, कभी सेक्स स्कैंडल, तो कभी दाल-भात घोटाला आये दिन मीडिया की सुर्खियों में छाये रहता है। अब बारी है आईईडी में काली रेतभरकर बरामद करने की, जिससे सेना के जवानों को पुरस्कार मिलने का सिलसिला जारी रहे, और पुरस्कार के स्वरूप मोटी रकम मिलते रही। आइए देखते हैं इस नये और बड़े घोटाले की कहानी को। जो इस समय मीडिया की 'हेडलाइलों' में शुमार है।
 
 जीं हां ख़बर जम्मू कश्मीर से आयी है। यहां पता चला है कि सेना में शामिल कुछ लोग और अधिकारी पुरस्कार पाने के लिए धमाका करने वाले उपकरणों का सहारा लेते थे। वो भी नकली धमाका करने वाले उपकरण। जी हां आईईडी में काली रेत भरकर आरडीएक्स के साथ बरामदगी में इन आईईडी को दिखाया जाता था। इस काम में सेना के मझले दर्जे के अधिकारियों का हाथ फिलहाल बताया जा रहा है। इसमें कहा जा रहा है कि सेना के उत्तरी और पश्चिमी कमान के मझले दर्जे के अधिकारियों का मिली भगत के बदौलत इस खेल को अंजाम दिया जा रहा था। फिलहाल अधिकारियों और इस खेल के रचनाकारों के बीच की सांठ-गांठ का खुलासा हो चुका है। इस पूरे खेल में सेना के गुप्तचर शाखा यानि मिलिट्री एंटेलीजेंस के लिए काम करने सतनाम सिंह नाम के एक व्यक्ति को भी शामिल बताया जा रहा है।
 
यह पुरानी कहानी पुरस्कार पाने के लिए गढ़ी जाती थी। इस बारे में जम्मू कश्मीर के एक व्यक्ति महबूब डार को हिरासत में लिया गया है। जिसने पूछ-ताछ के दौरान मान लिया है कि उसे नकली आईईडी को सुनियोजित तरीके से लगाने के लिए कहा जाता था, जिसके एवज में उसे 30-50 रूपए तक दिए जाते थे। फरवरी 2009 से अक्टूबर 2010 के बीच उसने कम से कम 50-60 बार इस तरह के कामों को अंजाम दिया है। मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक भारतीय सेना की उत्तरी और पश्चिमी कमान के कुछ अधिकारियों ने सेवा निवृत्ति सैनिकों के साथ मिलकर काली रेत को आईईडी में डालकर इसे प्लांट करते थे। बाद में इसे आरडीएक्स के साथ बरामद करते और पुरस्कार के स्वरूप मिलने वाली भारी भरकम पुरस्कार हथिया ली जाती।
 
वहीं राज्य और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस साजिश को रचने और अमली जामा पहनाने में सैन्य कमांड का कोई न कोई शख्स जरूर शामिल है। डार ने पूछताछ में बताया कि उसे शुरुआत में सेना के साथ काम करने वाले खुफिया कर्मचारी सतनाम सिंह ने रेत, टूटे पत्थर और सीमेंट लाने और डेटोनेटर लाकर उनके बदले में पत्थरों की खदान वालों को पैसे देने का आदेश दिया था। इन सभी को इकट्ठा करके डोडा में एक पुल के पास जिलेटिन की छड़ों के साथ लगा दिया गया। इसके बाद डार ने याद करते हुए बताया कि अगले दिन उसने अखबार में पढ़ा कि सेना ने कुछ बरामद किया है और उसे विस्फोटक के तौर पर पेश किया। अधिकारी के मुताबिक डार ने बताया कि उसे उस दिन के काम के लिए 40,000 रुपये दिए गए। सूत्रों के मुताबिक डार ने बताया कि जब उसे ऐसी फर्जी आईईडी बनाने में महारत हासिल हो गई, तो सेना के कई खुफिया अधिकारियों ने उसे कुछ लोगों को ऐसे फर्जी आईईडी देने को कहा।
आरोपी महबूब डार और पूर्व सैनिक राम प्रसाद से हुई पूछताछ में इनके व मिलिट्री इंटेलिजेंस के कुछ अधिकारियों के बीच गठजोड़ का खुलासा हुआ है। यह फर्जीवाड़ा तब पकड़ में आया जब पुलिस ने 8 अक्टूबर को जम्मू में एमएलए हॉस्टल के पास सेब के बक्से बरामद किए थे। इनमें छेद करके एक काला पदार्थ भरा गया था जिसे विस्फोटक समझा गया। चूंकि इनमें डेटोनेटर भी लगे थे इसलिए हड़कंप मच गया। इनकी फरेंसिक जांच के बाद पता चला कि काला पदार्थ पत्थरों की खदानों से लाई गई रेत है। जांचकर्ताओं के मुताबिक राज्य में एक योजनाबद्ध रैकेट काम कर रहा है जो मिलिट्री इंटेलिजेंस को मिलने वाले सीक्रेट फंड में इस तरह से सेंध लगा रहा है। यह फंड पाकिस्तान से लगने वाले इंटरनैशनल बॉर्डर और लाइन ऑफ कंट्रोल से जानकारी जुटाने के लिए है। जांचकर्ताओं के लिए यह खुलासा आंखें खोलने वाला था क्योंकि डार ने फर्जी आईईडी के बारे में जो जानकारी दी, वह आधिकारिक रेकॉर्ड से मेल खाती थी। ऐसे सभी मामलों में यह पता चला कि ऐसे विस्फोटकों को सेना ने आईईडी वाले स्थल पर नष्ट किया गया बताया।
 

Saturday, January 1, 2011

आरूषि की हत्या मां बाप ने की?


१ जनवरी २०११
केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि कि सीबीआई ने संदेह जताया है कि आरूषि की हत्या के पीछे उनकी मां नूपुर तलवार और राजेश तलवार का हाथ हो सकता है। सीबीआई ने कहा है कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को आरूषि के माता पिता प्रभावित करने की कोशिश की है। इससे पहले सीबीआई ने सबूतों के अभाव में इस केस को बंद करने का फैसला किया है।
 
 इस सिलसिले में 29 दिसंबर को गाजियाबाद की अदालत में पेश सीबीआई की 30 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजेश और नूपुर ने आरुषि के कमरे को धो दिया था और पुलिस को यह कह कर रेलवे स्टेशन की तरफ भेज दिया कि वह उनके नौकर हेमराज को पकड़े. यह बात 16 मई 2008 की सुबह की है। दिल्ली से सटे नोएडा में 14 वर्षीय आरुषि की 15 मई 2008 की रात को उसके घर में ही हत्या की गई। 16 मई को आरुषि की लाश मिलने के अगले ही दिन छत पर हेमराज का भी शव मिला। सीबीआई का कहना है कि आरुषि के माता पिता ने अपनी बेटी का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को प्रभावित करने की कोशिश की।

इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए नूपुर कहती हैं, "ये बिल्कुल बकवास बात है।सीबीआई का यह आरोप हास्यास्पद है। हम तो जांच को आगे बढ़ाने के लिए कहते रहे हैं। "उल्टे उन्होंने सीबीआई पर आरोप लगाया है कि वह इस मामले में यूपी पुलिस की लचर जांच पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। नूपुर के मुताबिक न तो उन्हें और न ही उनके पति को पता था कि आरुषि का पोस्टमार्टम कहां हो रहा है। उनका कहना है कि जब आरुषि की लाश मिली, तभी तड़के पुलिस ने घटनास्थल को अपने नियंत्रण में ले लिया।