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आकाश श्रीवास्तव |
प्रबंध संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़ |
नई दिल्ली। |
विधेयक को मानने के लिए सरकार का तैयार होना और दस सदस्यीय समिति का इतनी जल्दी गठन किया जाना क्या जबरजस्त जनदबाव का हिस्सा रहा है, या फिर सरकार और कांग्रेस की एक सोची समझी चाल? क्योंकि इनदिनों कई राज्यों में चुनाव का महौल चल रहा है। फिलहाल इसके पीछे जो सवाल उठे हुए हैं वह कई विवाद खड़े कर चुके हैं, जो आने वाले दिनों में कई और मतभेदों को सामने लाएंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे मसौदे से बाबा रामदेव को जिस तरह से अलग रखा गया वह सबसे बड़ी सरकारी कूटनीतिक चाल रही है। |
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 | | बाबा रामदेव से भ्रष्ट कांग्रेसी और केंद्र सरकार दोनों खार खाए बैठी हुई है। सूत्र बताते हैं कि केंद्र की सरकार ने अन्ना हजारे के प्रतिनिधियों से साफ कह दिया था कि सब तो ठीक है लेकिन इस पूरे अभियान में बाबा रामदेव का कहीं नाम नहीं आना चाहिए और साथ ही यह भी कह दिया था कि न तो समिति में बाबा रामदेव रहेंगे और न उनकी पसंद का कोई उनका आदमी रहेगा। इसी शर्त पर सरकार ने अन्ना की शर्तों को छटपट मान लिया। यह पता चल रहा है कि सरकार ने यह भी नीति अपनाई हुई है कि इस पूरे अभियान में बाबा रामदेव और उनके समर्थको (अन्ना के साथ जो लोग हैं) में ऐसी फूट डाली जाए जिससे बाबा रामदेव की हवा निकाली जा सके और उन्हें पूरी तरह से अलग-थलग किया जा सके। |
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सरकार फिलहाल इस मकसद में काफी हद तक कामयाब होती नज़र आ रही है। क्योंकि बाबा रामदेव ने पूरे अभियान को शक के दायरे देखना शुरू कर दिया है। उधर केंद्र और कांग्रेस दोनों खुश दिखाई दे रही हैं। कहने का मतलब इस पूरे अभियान में सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। जनलोकपाल विधेयक को लेकर चला जंतर मंतर पर देशव्यापी जनांदोलन में बाबा रामदेव को नीचा दिखाने और उन्हें अलग-थलग करने का सरकार की ओर से एक षडयंत्र रचा गया। इस षडयंत्र का ही नतीजा है कि जो लोग बाबा की अब तक सारी बातों को सिरमाथे चढ़ाते रहे हैं उन्होंने ही उनसे सवाल जवाब शुरू कर दिए और अपनी ही बातों को सर्वोपरि रखा। क्या कारण है कि लोकपाल विधेयक को लेकर बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गये आंदोलन के बावजूद उन्हें इस पूरे मसौदे से बाहर कर दिया गया। |
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सबको पता है भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ सबसे बड़ा मुहिम बाबा रामदेव ने शुरू की। उन्होंने पूरे देश में कुकरमुत्ते की तरह फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन छेड़ रखा है। यही कारण है कि वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों की असुरता को देखते हुए उन्होंने भारत स्वाभिमान पार्टी का गठन किया जिसके माध्यम से बाबा रामदेव ने एक जनांदोलन छेड़ रखा है। यही नहीं उन्होंने इस आंदोलन को पैना बनाने के लिए देश के ईमानदार और कर्मठ लोगों को एक मंच पर लाने का भगीरथ प्रयास किया जिसमें माननीय अन्ना हजारे, किरण वेदी, अरविंद केजरीवाला, स्वामी अग्निवेश प्रशांतभूषण, शशिभूषण आदि लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने के लिए अपने साथ जोड़ा।
अनेक प्रेस कांफ्रेंस में ये सारे लोग बाबा के साथ खड़े दिखे लेकिन वही आज बाबा की बातों को नकारने की हिम्मत दिखाने लगे हैं, आखिर क्यों? जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और 73 वर्षीय अन्ना हजारे को देश के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। हां यह बात अलग है कि अन्ना को पहले महाराष्ट्र के लोग जितना जानते थे उतना भारत के अन्य क्षेत्रों के लोग नहीं जानते थे। लेकिन अन्ना ने अनशन रखकर पूरे देश के लोगों के दिलों में जो स्थान पिछले चंद दिनों में बनाया है उतना व्यापक राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार उन्हें पिछले 73 वर्षों में शायद न मिली हो। इस पूरे अभियान के पीछे एक बहुत बड़ा सुनियोजित समूह काम कर रहा है इसमें किसी को कोई शक नहीं होनी चाहिए। अन्ना का अनशन काम आया और सरकार झुक गयी और अन्ना की जनलोकपाल विधेयक की शर्तों को मानने के लिए सरकार तैयार हो गयी। यह सब इतनी आसानी से नहीं हुआ है।
केंद्र की भ्रष्ट सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह और सरकारी विचौलिए कपिल सिब्बल की स्वामी अग्निवेश ने खुले कंठ से जो प्रशंसा की यह समझ में नहीं आता कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि हमने जो सरकार से मांगी थी सरकार ने हमें उससे भी बढ़कर दे दी है। उन्होंने कपिल सिब्बल की भी ऐसी तारीफ की जैसे कोई चापलूस तारीफ करता है। सबको पता है कि कई राज्यों में चुनाव हो रहे हैं ऐसे में सरकार यह बिल्कुल नहीं चाहेगी कि ऐसा कोई बखेड़ा खड़ा हो जिससे कांग्रेस को इन चुनावों में कोई नुकसान हो। स्वामी अग्निवेश को यह पता होना चाहिए कि समिति के जिसे अध्यक्ष (प्रणव मुखर्जी) बनाया गया है वह देश की अर्थव्यवस्था देखते हैं। और उनका मंत्रालय सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से ग्रसित है। देश को चलाने वाला वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह से भ्रष्टचार से ग्रस्त है।
इस समय देश की आर्थिक हालत यह है कि आम आदमी की कमर टूट चुकी है । यह सभी को पता है कि आम आदमी को दाल-रोटी खाना मुहाल हो गया है? इस देश में गुजर-बसर जानवरों से भी बदतर हो गया है। दूसरे महानुभाव है ए.के एंटोनी। जिनके नेतृत्व में देश की रक्षा की बागडोर थमी हुई है। इस रक्षा मंत्रालय में कितना भ्रष्टाचार फैला हुआ है यह भी जगजाहिर है। कपिल सिब्बल सरकार के दलाल के रूप में जाने जाते हैं। कानून मंत्री की भी कहानी कम दागदार नहीं है। देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार के अध्यक्ष बालाकृष्णन पर भी भ्रष्टाचार के कीचड़ उछल चुके हैं। |
यही नहीं बालाकृष्णन के खिलाफ केरल का एक अधिकारी गंभीर आरोप लगा चुका है। वह भी नाइंसाफी करने का। क्या देश के कानून मंत्री इन सब चीजों से परिचित नहीं रहे हैं। ऐसे में स्वामी अग्निवेश का यह कहना कि हमने सरकार से जो कुछ मांगा था उससे भी बढ़कर मिला है, यह भी किसी रहस्य से कम नहीं लगता। इतने भ्रष्ट सरकारी लोगों के रहते क्या जनलोकपाल विधेयक का मसौदा पूरी तरह से पारदर्शी बन पाएगा। क्या इससे इस आसुरी भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर पूरी तरह से लगाम लग पाएगा? यह अगले कुछ महीनों में साफ हो ही जाएगा। | |  |
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